उड़ी के शहीद गया के सुनील कुमार विद्यार्थी की तीन बेटियों ने अपने पिता की तरह सैनिक धर्म निभाया। मानवीय संवेदना के मोर्चे पर उनका ये युद्ध उनके पिता के युद्ध से कम मुश्किल नहीं था। जरा सोचकर देखिए। फोन पर पिता के शहीद होने की ख़बर आ चुकी है। माँ बिलख रही है। घर क्या पूरे मुहल्ले में मातम छाया हुआ है। पर अपने पिता की ये तीन लाडलियां खुद को तैयार करती हैं। आँसू इनके भी नहीं रुक रहे। हिचकियां ले-लेकर रो रही हैं तीनों। छलकती आँखों से प्रश्नपत्र तक धुंधले दिखेंगे, पर इन्हें स्कूल जाना है। आज इनकी परीक्षा जो है। इन्हें अपने पिता से किया वादा जो निभाना है। इन्हें भी आर्मी ऑफिसर जो बनना है।
शहीद सुनील की तीनों बेटियां डीएवी पब्लिक स्कूल (मेडिकल यूनिट) में पढ़ती हैं। बड़ी बेटी आरती कक्षा आठ, दूसरी बेटी अंशु कक्षा छह और तीसरी अंशिका कक्षा दो में पढ़ती है। सुनील अपनी तीसरी बेटी का नामांकन कराने इसी साल जून में आए थे और स्कूल प्राचार्य से कहा था – दो बेटियां आपके स्कूल में पढ़ रही हैं, तीसरी का भी नामांकन कर लीजिए। आपकी छांव में तीनों बेटियां पढ़ेंगी। इन्हें आर्मी ऑफिसर्स बनना है। कल तीनों की परीक्षा थी और छोटी-सी उम्र में आर्मी का अनुशासन जैसे उनकी रगों में दौड़ रहा था। तभी तो उनकी हिचकियों से बेंच भले हिलती रही, वे अपने कर्तव्य-पथ से नहीं हिलीं। तीनों ने परीक्षा पूरी की और फिर घर आकर माँ से लिपटकर खूब रोईं। माँ, जिसे अपनी सुध भले ही ना हो उस वक्त लेकिन अपने पति का कहा निभाने के लिए बेटियों को स्कूल जाने को कहना नहीं भूली थी।
आँसू, श्रद्धा और प्रेरणा से लबालब कर देने वाली एक और कहानी है उड़ी के एक और शहीद कैमूर के राकेश कुमार की पत्नी किरण की। शहीद राकेश का शव आज सुबह दस बजे उनके पैतृक गांव लाया गया तो जैसे उनके अंतिम दर्शन को पूरा कैमूर उमड़ पड़ा। उनका शव गांव के मध्य विद्यालय परिसर में रखा गया। परिजनों के चीत्कार से पूरा वातावरण जैसे रो उठा। शहीद राकेश का पार्थिव शरीर लाने वाले साथी जवान भी अपने आँसू नहीं रोक पा रहे थे। पर उस शहीद की पत्नी के पहुँचते ही माहौल और गमगीन होने की बजाय वीरता और देशभक्ति से ओतप्रोत हो गया।
जी हाँ, उस वीरांगना ने अपने पति के अंतिम दर्शन किए। उनको सलामी दी। रोती-बिलखती सास से कहा – मम्मी आप रोएंगी तो हम भी कमजोर पड़ जाएंगे। फिर एक साल के बेटे हर्ष से कहा – बेटे, पापा पर फूल चढ़ाओ। इतना ही नहीं, शव के सिरहाने खड़ी किरण ने वहाँ मौजूद सैनिकों से बड़ी दृढ़ता के साथ कहा – आपलोग प्रधानमंत्री मोदी तक मेरा यह संदेश जरूर पहुँचा दें कि वे पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाएं कि दुनिया के नक्शे से उसका नामोनिशान मिट जाए। बहू की हिम्मत देख शहीद के माता-पिता भी शोक से बाहर निकल जवानों से अपने बेटे की मौत का बदला लेने और सरकार तक पाकिस्तान पर कार्रवाई करने का पैगाम पहुँचाने को कहा। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होने पर वे आमरण अनशन पर बैठेंगे। अन्त में, गगनभेदी नारों के बीच शव को बक्सर रवाना किया गया, जहाँ एक साल के बेटे ने अपने पिता को मुखाग्नि दी।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप