बैडमिंटन में भारत को नई ऊँचाईयां देने वाली साइना नेहवाल ने एक बार फिर पूरे देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया। बीते रविवार को शानदार खेल दिखाते हुए उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज अपने नाम कर लिया। सिडनी में खेले गए फाइनल मैच में साइना ने चीन की सुन यू को 11-21, 21-14, 21-19 से हराया। बता दें कि साइना ने इस खिताब पर दूसरी बार कब्जा किया है और ऐसा करने वाली वो पहली खिलाड़ी हैं। रियो ओलंपिक से पहले हासिल की गई ये जीत उनके लिए निश्चित रूप से मोरल बूस्टर का काम करेगी।
7.5 लाख डॉलर की इनामी राशि वाले इस टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला अत्यंत रोमांचक रहा। तमाम भारतीय दर्शक उस वक्त बेहद निराश हुए जब साइना ने अपना पहला सेट गंवा दिया था। लेकिन जबरदस्त वापसी करते हुए उन्होंने दूसरा सेट अपने नाम कर लिया। हालांकि, तीसरे सेट में सुन यू ने उन्हें कड़ी टक्कर दी लेकिन साइना ने अंतत: खिताब अपने नाम कर लिया। सुन यू के खिलाफ साइना का पलड़ा वैसे भी भारी रहा है। इससे पहले खेले गए छह मुकाबलों में साइना को पाँच बार जीत मिली थी। पिछली बार साइना ने चाइना ओपन में सुन यू के खिलाफ जीत हासिल की थी।
साइना की ये जीत महज एक खिलाड़ी की जीत नहीं है। उनकी ये जीत हरियाणा के उस समाज को चुनौती है जो महिलाओं को पुरुषों से कम समझता है। ये हरियाणा ही है जहाँ सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्यायें होती हैं। यहीं के एक जाट परिवार में जब साइना का जन्म हुआ था तो उनकी दादी ने अपनी पोती का चेहरा देखने से इंकार कर दिया था। कई महीनों तक उन्होंने साइना से खुद को दूर रखा। लेकिन, साइना के माता-पिता ने उन्हें हमेशा अपनी शक्ति समझा। बैडमिंटन खिलाड़ी माता-पिता ने शुरू से ही साइना को बैडमिंटन खेलने के लिए प्रेरित किया। साइना के साथ उन्होंने भी जी-तोड़ मेहनत की और एक दिन वो आया जब साइना विश्व बैडमिंटन रैंकिंग में शीर्ष स्थान तक पहुँचीं।
ये साइना ही थीं जिन्होंने बैडमिंटन में चीनी खिलाड़ियों के वर्चस्व को खत्म कर भारतीय चुनौती को जिंदा किया। ओलंपिक खेलों में महिला एकल क्वार्टर फाइनल तक पहुंच कर कांस्य पदक जीतने वाली वो देश की पहली महिला खिलाड़ी बनीं। अपनी बेजोड़ उपलब्धियों के कारण 26 वर्षीया साइना ‘पद्मभूषण’ और ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित हो चुकी हैं।
साइना ने जितनी मेहनत अपने इस मुकाम को हासिल करने के लिए की है, उससे ज्यादा त्याग उनके माता-पिता ने उन्हें इस मंजिल तक पहुंचाने में किया है। उन्होंने जाट समुदाय की बेटियों के कमतर होने की बात को गलत साबित करके दिखाया है। आज साइना की दादी को भी उन पर गर्व है। देश का गुरूर बन चुकी इस बेटी को दिल से सलाम।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप