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रजनीकांत : कद, करिश्मा और ‘कबाली’

आमतौर पर बॉलीवुड के बड़े स्टार अपनी फिल्म की रिलीज के लिए दिवाली और ईद जैसे छुट्टी वाले दिन चुनते हैं लेकिन रजनीकांत की फिल्म जिस दिन रिलीज होती है उस दिन छुट्टी डिक्लेयर हो जाती है। रजनीकांत पर बने चुटकुलों में कई अविश्वसनीय बातें कही जाती हैं और आप शायद सोच रहे होंगे कि ये भी वैसी ही कोई बात है। अगर ऐसा है तो आप गलत हैं। पिछले महीने तमिल, तेलगु, हिन्दी और अंग्रेजी में एक साथ रिलीज हुई रजनीकांत की फिल्म ‘कबाली’ ने ऐसी कई असंभव-सी बातों को संभव कर दिया है।

जी हाँ, चेन्नई की तमाम बड़ी-छोटी कम्पनियों ने जिस दिन कबाली रिलीज हुई उस दिन यानि 22 जुलाई को छुट्टी घोषित कर दी थी। दक्षिण भारतीय महानायक की इस फिल्म की माया कुछ ऐसी थी  कि मलेशिया, जहाँ फिल्म मलय भाषा में रिलीज हुई, की सरकार ने रजनीकांत के सम्मान में ‘कबाली स्टैम्प’ जारी किया, एक एयरलाइन कम्पनी ने स्पेशल ‘कबाली फ्लाइट’ लॉन्च की और पूरे हवाई जहाज को ‘रजनीमय’ कर दिया, गूगल प्ले ने ‘कबाली ऐप’ लॉन्च किया और केरल की कम्पनी मुथूट फिनकॉर्प ने खास ‘कबाली चांदी के सिक्के’ जारी किए जिन पर रजनीकांत अपने ‘कबाली’ अवतार में छपे हुए हैं।

इतना सब सुनने के बाद सहज रूप से उत्सुकता होती है कि आखिर ‘कबाली’ में ऐसा क्या है? क्या कहानी है इसकी? कैसा अभिनय, कैसा निर्देशन, कैसा गीत-संगीत है इसका? किस क्रिटिक ने इसके रिव्यू में क्या लिखा? वगैरह-वगैरह। पर जनाब जिस फिल्म को देखने के लिए फैन्स रात के तीन बजे से ही टिकट काउंटर पर लाईन लगा लें और फिल्म की रिलीज से पहले ही सिनेमाघर हाउसफुल हो जाएं उस फिल्म को किसी रिव्यू की क्या दरकार? रजनीकांत की फिल्म में लोग केवल रजनीकांत को देखने आते हैं, बाकी क्या, क्यों और कैसा है, उनके फैन्स को ये सोचने की ना तो जरूरत होती है, ना फुरसत।

वैसे पा रंजीत के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी टिपिकल रजनीकांत फिल्मों की तरह है जहाँ रजनी एक नेक दिल आदमी हैं और गरीबों, दीन-दुखियों की दिल खोलकर सेवा करते हैं। उनके इस काम के लिए पैसा कहाँ से आता है, इसका पता नहीं चलता लेकिन कुछ लोग उनको दबी जुबान में डॉन कहते हैं। इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है और ‘कबाली द डॉन’ के ‘कबाली द समाजसेवी’ बनने तक का सफर सामने आता है। फिर एंट्री होती है एक चाईनीज बिजनेसमैन की जो हर गलत काम करता है और कबाली को बर्बाद कर देना चाहता है। क्या कबाली उसे रोक पाता है? आप ही बताएं, इसका जवाब भला किसे पता नहीं होगा? अपने इन्हीं ‘जवाबों’ से तो रजनीकांत अपने करोड़ों फैन्स को दशकों से लाजवाब करते आए हैं।

रजनीकांत अपने फैन्स को निराश नहीं करते और उससे भी बड़ी बात ये कि अगर निराश करना भी चाहें तो उनके फैन्स निराश नहीं होते। उनके एक-एक डायलॉग में वो अदा है जो आपको सीटी बजाने पर मजबूर कर देगी और हॉल का माहौल आपको ऐसा महसूस करा देगा मानो आप सदी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म देख रहे हैं। और फिर इससे आगे फिल्म की बॉक्स आफिस रिपोर्ट तो है ही जहाँ लगभग 700 करोड़ का करिश्माई आँकड़ा आपका इन्तजार कर रहा है।

पर क्या ‘कबाली’ और रजनीकांत की चर्चा केवल इन्हीं बातों के लिए होनी चाहिए? प्रश्न यह उठता है कि साधारण शक्ल-सूरत और मामूली कद-काठी का, दक्षिण भारतीय लोगों की किसी भी भीड़ में आसानी से  खो जा सकने वाले एक सांवले शख्स में ऐसा क्या है जो उसे इतना खास बनाता है? सच तो यह है कि 70 के दशक में पर्दे पर जिस दमन, अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़कर अमिताभ बच्चन हिन्दी फिल्मों के महानायक बने, वही ‘लड़ाई’ रजनीकांत आज तक लड़ रहे हैं, 65 साल की उम्र में भी। रजनीकांत का ‘महानायकत्व’ साबित करता है कि आम लोग आज भी ‘व्यवस्था’ से किस कदर त्रस्त हैं, कि उन्हें आज भी ‘मुक्ति’ का कोई मार्ग नहीं दिखता, कि वे पर्दे पर ‘रजनीकांत’ बनकर और समाज के ‘गुनहगारों’ को सजा देकर खुश हो लेते हैं। जब तक आम लोगों को ‘रजनीकांत’ बनकर खुशी मिलती रहेगी, ‘कबाली’ कमाल करती रहेगी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप  

 

 

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