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मधेपुरा ने कहा महर्षि वेदव्यास के नाम पर हो केन्द्रीय विश्वविद्यालय

समाजवाद की धरती कहे जाने वाले मधेपुरा से गीता के रचयिता महर्षि वेदव्यास के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग उठी है। अवसर था महर्षि की जयंती का, जिसका आयोजन मंगलवार को स्थानीय वेदव्यास कॉलेज में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विधान मंडल में विरोधी दल के नेता डॉ. प्रेम कुमार ने किया और मुख्य अतिथि थे मधेपुरा स्थित भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति व पूर्व सांसद डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि।

अत्यन्त गरिमापूर्ण कार्यक्रम में बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि देश के अन्दर कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो राम की जगह रावण और कृष्ण की जगह कंस को आदर्श बनाना चाहती हैं। यह प्रयास जघन्य और नकारात्मक है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता की मजबूती के लिए हमें पुन: अपने संस्कार और संस्कृति को जगाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि महर्षि वेदव्यास भविष्यद्रष्टा थे और अपनी कृतियों के जरिए उन्होंने भारतीय संस्कृति की जो नींव रखी, वह सदा स्तुत्य रहेगा।

मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा, साहित्य और राजनीति में एक समान पैठ रखने वाले डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि ने कहा कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत एवं गीता की रचना कर जहाँ मानव-जाति का कल्याण किया, वहीं भारतीय धर्म और संस्कृति को वैश्विक पटल पर स्थापित किया। उन्होंने कहा कि गीता कृष्ण की चिन्तना की अभिव्यक्ति है, जिसके माध्यम व्यास हैं। अगर व्यास ना होते तो हमें समाज की जाग्रत चेतना का बोध ना होता और ना ही हम सत्य और असत्य, नीति और अनीति, न्याय और अन्याय, अधिकार और कर्तव्य की सही और सच्ची व्याख्या कर पाते।

इस अवसर पर बोलते हुए पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना ने कहा कि महर्षि वेदव्यास के नाम पर शिक्षण-संस्थान की स्थापना किया जाना सराहना योग्य है। पूर्व विधायक संजीव झा ने कहा कि महाभारत और गीता को भूलने का घातक परिणाम सांस्कृतिक अवमूल्यन और देशद्रोह के रूप में देखने को मिल रहा है। बीएनएमयू के पूर्व प्रतिकुलपति डॉ. रामदेव प्रसाद ने कहा कि महर्षि-रचित महाभारत सिर्फ महाकाव्य ही नहीं बल्कि विश्व साहित्य का अमरकोष है। वेदव्यास कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आलोक कुमार ने कहा कि महर्षि का कृतित्व आज भी प्रासंगिक है। वहीं अतिपिछड़ा आयोग के पूर्व सदस्य सूर्यनारायण कामत ने कहा कि वेदव्यास भारतीय संस्कृति के संस्थापक पुरुषों में थे। इन्हीं विचारों को आगे बढ़ाते हुए संस्थापक सचिव डॉ. रामचन्द्र प्रसाद मंडल ने कहा कि हम पूर्वजों से प्रेरणा लेकर ही वर्तमान और भविष्य का खाका तैयार करते हैं। व्यास और वाल्मीकि हमारे ऐसे ही पूर्वज हैं और ये दोनों भारतीय संस्कृति की जीवनधारा रहे हैं।

महर्षि वेदव्यास के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग इस जयंती समारोह की खास बात रही। नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार ने महर्षि के  नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही उनकी जयंती के दिन राजकीय अवकाश की मांग भी की। मुख्य अतिथि डॉ. रवि ने कहा कि महर्षि वेदव्यास जैसे ‘प्रतीकपुरुष’ हमारी समस्त पीढ़ियों के लिए धरोहर हैं। उनके नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना कर हम उनकी ‘थाती’ को सही स्वरूप में सहेज पाएंगे। मंच पर मौजूद गणमान्य अतिथियों एवं उपस्थित विशाल जनसमूह ने इस विचार का पुरजोर समर्थन किया।

उक्त जयंती समारोह में पूर्व प्रतिकुलपति डॉ. रामदेव प्रसाद और वरिष्ठ चिकिसक डॉ. सीताराम यादव को ‘व्यास शिखर पदक’ एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। जयंती के मौके पर महाविद्यालय परिसर में महर्षि वेदव्यास की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई और शहर में ‘व्यास रथ यात्रा’ भी निकाली गई।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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