टेक्नोलॉजी दिन-ब-दिन बदल रही है। अभी हम 3जी से 4जी की ओर कदम बढ़ा ही रहे थे कि 5जी ने दस्तक दे दी। वह दिन दूर नहीं जब 5जी के जरिए सुपरफास्ट इंटरनेट इस्तेमाल किया जा सकेगा। मगर क्या आप जानते हैं कि ये 5जी तकनीक भारत की ऋणी है? जी हां, ये भारत के अमर वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस थे, जिनके 100 साल से भी पहले किए प्रयोगों के कारण दुनिया 5जी से रू-ब-रू हो सकेगी।
30 नवंबर 1858 को मयमन सिंह (अब बांगलादेश में) में जन्मे सर जगदीश चंद्र बोस कलकत्ता यूनिवर्सिटी में भौतिकी की पढ़ाई करने के बाद कैब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे। आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि बोस मिलीमीटर वेवलेंग्थ (30 GHz से 300 GHz स्पेक्ट्रम) के जरिए रेडियो का प्रदर्शन करने वाले पहले शख्स थे। उन्होंने 5mm की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे पैदा की थीं जिसकी फ्रिक्वेंसी 60GHz थी। यह उपलब्धि उन्होंने उस वक्त हासिल की थी जब इतनी लो फ्रिक्वेंसी को मापने वाले उपकरण भी ईजाद नहीं हुए थे। बहरहाल, जिन मिलीमीटर तरंगों पर जगदीश चंद्र बोस ने काम किया था, वही आज 5जी तकनीक को विकसित करने में मददगार साबित हो रही है।
बोस की ये मिलीमीटर तरंगें और भी कई रूपों में इस्तेमाल हो रही हैं। रेडियो टेलिस्कोप से लेकर रडार तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कारों के कोलिजन वॉर्निंग सिस्टम या क्रूज कंट्रोल में भी इसका प्रयोग होता है। इस महान वैज्ञानिक ने क्रिस्टल रेडियो डिटेक्टर, वेवगाइड, हॉर्न एंटीना जैसे कई उपकरणों का आविष्कार किया था, जिनका इस्तेमाल माइक्रोवेव फ्रिक्वेंसीज में होता है।