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हमें पता है हाफिज सईद और शाहरुख खान में फर्क, फिर ‘दिलवाले’ पर मुर्दाबाद क्यों..?

भारत की सफलतम फिल्मों में शुमार ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में राज (शाहरुख) और सिमरन (काजोल) की प्रेम कहानी ने पर्दे पर जैसे जादू-सा रच डाला था। उम्मीद की जा रही थी कि 20 साल बाद ‘दिलवाले’ में ये जोड़ी एक बार फिर कुछ वैसा ही कमाल दिखाएगी। उनके चाहनेवाले बेसब्री से इंतजार कर रहे थे शुक्रवार 18 दिसम्बर का। फिल्म तय दिन पर रिलीज भी हुई लेकिन ‘शाहरुख मुर्दाबाद’ के नारे के साथ। बिहार समेत भारत के कई राज्यों में इस फिल्म का विरोध किया जा रहा है। कहीं फिल्म के पोस्टर फाड़े जा रहे हैं तो कहीं शाहरुख का पुतला जल रहा है। लोगों से फिल्म नहीं देखने की अपील की जा रही है। कुछ जगहों पर विरोध-प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा।

सबसे पहले तो ये जान लें कि देश के कई सिनेमाघरों में जिस ‘दिलवाले’ के शो स्थगित किये जा रहे हैं उसके कंटेंट से प्रदर्शनकारियों का कोई लेना-देना नहीं। फिल्म आज के हिट डायरेक्टर रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनी है और शाहरुख-काजोल के अलावे वरुण धवन और कीर्ति सेनन ने भी इसमें अभिनय किया है। फिल्म का विरोध वास्तव में इसके नायक शाहरुख खान को लेकर है। अभिनय के अलावे शाहरुख इस फिल्म के निर्माण से भी जुड़े हैं और इसकी सफलता-असफलता पर बहुत कुछ टिका है उनका। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या कर दिया शाहरुख ने..? ‘दिलवाले’ का विरोध कर किस जुर्म की सजा दी जा रही है उन्हें..?

आज एक ओर विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू सेना, शिवराष्ट्र सेना जैसे हिन्दूवादी संगठन और दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता जिस वजह से शाहरुख की फिल्म का बहिष्कार कर रहे हैं उसके मूल में है पिछले कुछ महीने से भारतीय समाज और राजनीति के पटल पर धब्बे की तरह उभरा असहिष्णुता (Intolerance) का मुद्दा। पहले कन्नड़ लेखक कलबुर्गी और कुछ समय बाद यूपी के दादरी में गोमांस रखने के शक में अखलाक नामक शख्स की हत्या के बाद ये मुद्दा भड़का और पूरे देश में फैल गया। कई लेखकों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों ने देश में बढ़ रहे तथाकथित इन्टॉलरेंस के विरोध में अपने पुरस्कार लौटा दिए। इसी दौरान आमिर खान का देश छोड़ने वाला बयान सामने आया और शाहरुख उनके समर्थन में दिखे। 2 नवम्बर को अपने 50वें जन्मदिन पर एक चैनल से उन्होंने कहा कि “देश में इन्टॉलरेंस बढ़ रहा है। अगर मुझसे कहा जाता है तो एक सिम्बॉलिक जेस्चर के तहत मैं भी अवार्ड लौटा सकता हूँ। देश में तेजी से कट्टरता बढ़ी है।“

हालांकि ‘दिलवाले’ के रिलीज से पहले 16 दिसम्बर को शाहरुख ने कहा कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया। देश में कोई इन्टॉलरेंस नहीं है। अगर उन्होंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है तो वह माफी मांगते हैं। पर उन्हें ‘माफी’ नहीं मिली। खासकर उन राज्यों से जहाँ सत्ता में बीजेपी है। मसलन गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और झारखंड। वैसे विरोध-प्रदर्शन राजधानी दिल्ली और बिहार, यूपी जैसे राज्यों में भी हुए जहाँ बीजेपी का शासन नहीं है। पर विरोध करने वाले लोग हर जगह ‘समान विचार’ वाले  हैं।

हजारों साल का इतिहास गवाह है कि इन्टॉलरेंस यानि असिष्णुता इस देश के संस्कार में ही नहीं है। अगर ये देश असहिष्णु होता तो तीनों खान (शाहरुख-आमिर-सलमान) हिन्दी सिनेमा पर राज नहीं कर रहे होते। इस देश में इन्हें पलकों पर बिठाने वाले करोड़ों लोग हैं और ऐसे में आमिर और शाहरुख के बयानों से कुछ लोगों के ‘आहत’ होने को भी गलत नहीं कहा जा सकता। पर भावनाओं को ठेस पहुँचना एक बात है और उसे राजनीति का रंग देना दूसरी। अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नकारकर मान भी लें कि शाहरुख ने गलत कहा था तो भी क्या बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का शाहरुख को देशद्रोही कहना या फिर बीजेपी के ही सांसद योगी आदित्यनाथ का शाहरुख की तुलना आतंकी हाफिज सईद से करना और साध्वी प्राची का ये कहना कि वे पाकिस्तान के एजेंट हैं कहीं से भी सही नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की प्रतिक्रिया ही अपने आप में ‘असहिष्णुता’ है।

ना जाने कितने ‘हाफिज सईद’ हर पल इस ताक में रहते हैं कि कब इस तरह का मौका आए और वे हमारे किसी ‘शाहरुख’ को ट्वीट कर पाकिस्तान आने का ‘निमंत्रण’ दे। शाहरुख के मामले में हाफिज सईद ने ठीक यही किया भी। जब तक हम अपने-अपने स्वार्थ में असहिष्णुता (Intolerance) जैसे मुद्दों को हवा देते रहेंगे तब तक हाफिज सईद जैसे लोगों को भारतीय मुसलमानों से ‘छद्म’ सहानुभूति दिखाने का मौका मिलता रहेगा। हमें पूरी दृढ़ता से ये बताना होगा कि भारत सदियों से ‘शरण’ देता आया है। यहाँ से किसी को कहीं जाकर ‘शरण’ लेने की नौबत ना तो कभी आई है, ना आएगी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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