बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ. अशोक चौधरी 17 जुलाई से राज्य भर की पदयात्रा करेंगे। उद्देश्य है लोगों में शिक्षा की भूख जगाना, आजादी के इतने वर्षों बाद भी ‘अक्षर’ की ताकत से अनजान परिवारों को जागरुक बनाना, सरकारी विद्यालयों की ‘गुणवत्ता’ और ‘अनियमितता’ की पड़ताल करना और शिक्षण संस्थाओं पर ‘सामाजिक अंकुश’ लगाना। यह विशुद्ध रूप से शिक्षा जागरुकता पदयात्रा होगी जिसमें महागठबंधन के तीनों दलों के संबंधित जिलाध्यक्ष, स्थानीय विधायक, जन प्रतिनिधि व शिक्षा महकमे के डीईओ, डीपीओ, बीईओ समेत अन्य पदाधिकारी भी शामिल होंगे।
बता दें कि पहले चरण में शिक्षा मंत्री सीमांचल और कोसी अंचल के पाँच जिलों कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, सहरसा और सुपौल की पदयात्रा करेंगे। पदयात्रा में मंत्री लोगों से पूछेंगे कि आपके इलाके में कहीं शिक्षा का फर्जी कारोबार चल रहा है तो जानकारी दीजिए, उस पर कार्रवाई की जाएगी। यह जानने की कोशिश भी की जाएगी कि जिस कॉलेज की क्षमता 500 विद्यार्थियों की है, वहाँ 2000 बच्चे कैसे एडमिशन करा लेते हैं? और ये भी कि किसी विद्यालय में पाँच शिक्षक हैं और तीन ही क्यों आ रहे हैं?
हमारे शिक्षा मंत्री अपनी इस यात्रा में जानना चाहते हैं कि बच्चों के मिड डे मील की चोरी क्यों और कैसे हो रही है? वो बड़ी शिद्दत से जानना चाहते हैं कि पोशाक, साइकिल, किताब, मिड डे मील समेत तमाम प्रोत्साहन योजनाओं के बावजूद शिक्षा की रोशनी हर घर तक क्यों नहीं पहुँच पा रही है? और उतनी ही शिद्दत से इस यात्रा में वो सरकार के मुखिया नीतीश कुमार के शराबबंदी अभियान की बातें भी करना चाहते हैं।
ये तमाम बातें सुनकर शिक्षा मंत्री जी के प्रति आभार जताना लाजिमी है। हम आभार जताते भी हैं लेकिन कुछ सवाल भीतर कुलबुला रहे हैं जो उनसे पूछे बिना मन नहीं मान रहा। उनसे पहला सवाल ये कि क्या शिक्षा मंत्री समेत पूरी सरकार के ‘ज्ञान-चक्षु’ लालकेश्वर प्रसाद और बच्चा राय ने ही खोले हैं? क्या इन दो ‘महापुरुषों’ से पहले सब के सब ‘सावन के अंधे’ थे? दूसरा सवाल, क्या उन तक ‘बिहार की राजधानी दिल्ली’ कहने वाले और अपनी कक्षा ठेके पर देने वाले शिक्षकों की ‘महागाथा’ भी अब तक नहीं पहुँची है? तीसरा सवाल, सरकार की नाक के ठीक नीचे स्कूल और कॉलेज के नाम पर परीक्षा दिलाने और पास कराने की हजारों ‘फैक्ट्रियां’ दशकों से चल रही हैं और ‘पदयात्रा’ की जरूरत आज महसूस हुई है? क्या अब से पहले सरकार गांधीजी के तीन बंदरों का अनुसरण किए बैठी थी?
शिक्षा मंत्रीजी, सच तो यह है कि जो जानने के लिए आप पदयात्रा करने जा रहे हैं वो आप और आपकी सरकार के मुखिया पहले से जान रहे हैं। वो तो भला हो लालकेश्वर प्रसाद और बच्चा राय के ‘कुकृत्य’ का कि आप ‘लोकलाज’ से अपना आसन छोड़ लोगों के बीच जा रहे हैं। खैर, बहुत देर से सही, हम मान लेते हैं कि आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो गया। लेकिन शिक्षा मंत्रीजी, आप समाज को उसकी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने की बात नाहक ही कर रहे हैं, क्योंकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि इस समाज की चमड़ी में थोड़ी भी ‘सिहरन’ बची होती तो यहाँ शिक्षा या राजनीति के ‘सौदागर’ पैदा ही नहीं होते।
वैसे शिक्षामंत्रीजी, आपकी पदयात्रा की ये सोच बड़ी अच्छी है। ये तब और ज्यादा अच्छी लगती जब आपके साथ ‘विकास-पुरुष’ भी होते। लेकिन क्या ‘दिल्ली’ पर नज़र टिकाए आपकी सरकार के मुखिया ‘शराबबंदी’ से थोड़ा वक्त निकालकर आपके साथ इस पदयात्रा में चार कदम चलने की जहमत नहीं उठाएंगे?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप