कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अंबिका सभागार में सुकवि सियाराम यादव मयंक के एकल काव्य पाठ का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ की अध्यक्षता में किया गया। विषय प्रवेश करते हुए अध्यक्ष ने कहा कि मयंक की गजलें हिन्दी गीति काव्य की एक महत्वपूर्ण विधा के रूप में हृदय के मनभावों को अभिव्यक्त करती हैं। पहले गजलों में कोमल भावों की अभिव्यक्ति मिलती थी, किन्तु अब मयंक सरीखे सचेतन गज़लकारों की गजलें श्रृंगार रस की अनुभूतियों की अपेक्षा जीवन के यथार्थ से जुड़कर अपनी व्यापकता से हमारी संवेदनाओं को स्पर्श करती हैं।
इस अवसर पर सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने कहा कि गज़ल अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फारसी, उर्दू और हिन्दी साहित्य में पर्याप्त लोकप्रिय हुई। डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि हिन्दी के दुष्यंत कुमार सहित अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया। इसी परंपरा में सुकवि मयंक का नाम आता है। अब तो मयंक की गजलें सामान्य श्रोताओं के सिर चढ़कर बोलने लगी है।
उद्गार व्यक्त करते हुए डॉ.सिद्धेश्वर काश्यप, डॉ.विनय कुमार चौधरी, प्रो.सचिन्द्र, प्रो मणिभूषण वर्मा, रघुनाथ यादव आदि ने यही कहा कि गज़लें व्यक्ति चेतना, सामाजिक चेतना, राजनीतिक असमानता एवं जीवन के विविध आयामों को उकेरती हैं। गज़ल के चिंतन पक्ष को मौलिक ढंग से ऊंचाई देने में मयंक ने कामयाबी भी हासिल की है। सबों ने मयंक की कामयाबी की सराहना की।
मयंक ने अपनी लगभग बीस गजलों का सस्वर पाठ किया। हाल में ही प्रकाशित गज़ल की पुस्तक “मोहब्बत के चिराग” से भी उन्होंने अनेक गजलें तरन्नुम में सुना श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर खूब तालियाँ बटोरी। धन्यवाद ज्ञापन सचिव डॉ.मधेपुरी ने किया।
इस अवसर पर साहित्यानुरागी उल्लास मुखर्जी, शिवजी साह, डॉ.अशोक कुमार, फर्जी कवि डॉ.अरुण कुमार, डाक अध्यक्ष राजेश कुमार, डॉ.एन.के. निराला, नीरज कुमार, निदेशक श्यामल कुमार सुमित्र, प्राचार्य डॉ.हरिनंदन यादव आदि ने संस्थापक युगल शास्त्री प्रेम की स्मृति में कविता पाठ किया।