madhepura vidhan sabha election 2015

पर्दे में रहने दो . . . . ! पर्दा ना उठाओ . . . . !!

कभी गरीबों का शिमला व दार्जिलिंग कहलानेवाला मधेपुरा अब यदाकदा राजस्थानी गर्मी का भी अहसास करा देता है | इस दौर से मधेपुरा का मौसम ही नहीं गुजर रहा बल्कि यहाँ की राजनीतिक गतिविधियों में भी स्पष्ट परिवर्तन व बदलाव नजर आने लगा है | जब मधेपुरा की विरासत रासबिहारी-शिवनंदन-भूपेन्द्र . . . की “होत” हुआ करती तबके दिनों में सभी समाजसेवियों की सही-सही पहचान होती | उन्हें भरपूर सामाजिक इज्जत व सम्मान दिया जाता | तब की राजनीतिक गतिविधियों में आज की तरह गर्मी नहीं हुआ करती | सारा वातावरण ठंडा-ठंडा, कूल-कूल हुआ करता | तब के नेतृत्व वैसों को ढूंढ-तलाशकर उम्मीदवार बनाते जो कार्यकर्ता कहीं दूर-दराज के गाँवों-कस्बों में, किसी अल्पसंख्यकों के टोले-टप्परों में या चटाई पर बैठकर किसी दलित बस्ती में – सामाजिक कुरीतियों से लड़ने हेतु योजना बना रहे होते, शिक्षा का अलख जगा रहे होते तथा लोगों को हक़ की खातिर लड़ने की ट्रेनिंग दे रहे होते |

परन्तु, आज मधेपुरा के मौसम के साथ-साथ राजनीतिक मौसम में भी काफी बदलाव आ गया है | चारों ओर गर्मी है और है गरमाहट | विधायकों का चुनाव सामने है | आचार संहिता झाँकने लगी है | कहीं मंत्री नरेन्द्र यादव तो कहीं प्रभारी भूपेन्द्र यादव का आगमन होने लगा है | उनके इर्द-गीर्द बैठनेवालों से सभी पैसेवाले रिश्ते जोड़ने लगे हैं | जिसने गाँव कभी देखा नहीं, जिन्हें किसानों की माली हालत का पता नहीं, फ़सल का ज्ञान नहीं, समस्याओं की जानकारी नहीं. . . . . वे सभी नया-नया कुर्ता-पायजामा सिलाने लगे हैं | इतना ही नहीं महीने दो महीने पहले कहीं और थे लेकिन आज कहीं और दिखने लगे हैं | तुर्रा तो यह है कि चलते-चलते रुक गये और बगल वाले के दरवाजे खटखटाने लगे हैं . . . . क्योंकि वहाँ एक पुराना गाना बज रहा होता है – मेरा घर खुला है, खुला ही रहेगा, तुम्हारे लिए . . . . . !

और जो बापू के गांवों के लोगों की सेवा में लगा है उन्हें वहीँ रहने दो . . . . वहीँ सो जाने दो और गाँधी के गाँवों में ही दफ़न हो जाने दो . . . . और आगे बहुत कुछ ….. लेकिन उन्हें … पर्दे में रहने दो . . . . पर्दा ना उठाओ !!

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