Rakhi Dutta Liver Transplant at Asian Institute of Gastroenterologist Hyrabad.

बेटियाँ बोझ नहीं, जिन्दगी का दूसरा नाम होती है

भारतीय समाज में बेटियों के प्रति लोगों की मानसिकता सर्वाधिक क्रूर हो चुकी है। धारणा यहाँ तक बन गयी है कि बेटियाँ परिवार के लिए बोझ होती है। बेटियाँ सिर्फ लेने के लिए होती है, देने के लिए नहीं। तभी तो अधिकांश परिवारों में बेटियों को बासी और बेटों को ताजा भोजन परोसा जाता है। बेटा को अच्छे पोशाक के साथ अच्छे स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजा जाता है।

बता दें कि समाज में बेटी के महत्व को लेकर लोगों को जागरुक करने तथा लिंगानुपात के अंतर को पाटने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ सामाजिक योजना की शुरुआत 2015 के 22 जनवरी को की। इस योजना के लागू होते ही नन्ही-मुन्नी बेटियाँ क्या कहने लगी है अपने पापा से-

चलते-चलते थक गई….. कंधे पे बिठा लो ना पापा !

अंधेरे से डर लगता है….. सीने से लगा लो ना पापा !

अब स्कूल पूरा हो गया….. कॉलेज में पढ़ने दो ना पापा !

धरती पर बोझ नहीं होती बेटियाँ…. दुनिया को समझा दो ना पापा !

ये समझाने की नहीं, बल्कि गहराई में उतर कर महसूसने की बातें हैं। हाल ही में कोलकाता की 19 वर्षीय राखी दत्ता नाम की बेटी अपने पिता के लीवर की गंभीर बीमारी का इलाज कराते-कराते थक चुकी थी। जब कोलकाता के डॉक्टरों द्वारा इलाज करने की पूरी कोशिश नाकामयाब हो गई तो वह बेटी राखी अपने पिता को लेकर हैदराबाद के एआईजी (Asian Institute of Gastroenterology) अस्पताल चली गई।

यह भी जान लीजिए कि जांचोपरांत वहाँ के सभी डॉक्टरों ने एक स्वर से यही कहा कि इस मरीज की लंबी आयु के लिए केवल और केवल लीवर ट्रांसप्लांट ही करना होगा। यह सुनते ही बेटी राखी ने तुरंत हाँ कर दी। सारी औपचारिकताओं को पूरी करने के बाद राखी दत्ता ने अपने पिता को 65% लीवर डोनेट कर उन्हें दूसरी नई जिंदगी दे दी……। तब से जितने लोगों ने यह कहानी सुनी….. सबों ने एक स्वर से यही कहा- “बेटियाँ बोझ नहीं….. जिंदगी का दूसरा नाम होती है।”

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