आज एक नहीं….. बिहार के दो-दो नीतीश का परचम चतुर्दिक लहरा रहा है। एक हैं डॉ.नीतीश जिसने मुंगेर केे एक साधारण परिवार व ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर दुनिया के होम्योपैथी चिकित्सा क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है और दूसरे हैं इंजीनियर नीतीश जो बिहार में न्याय के साथ विकास की गंगा बहाने में लगे हैं और अपना बेशकीमती जीवन बिना किसी चाहत के दलितों-शोषितों के सेवार्थ न्योछावर करने में लगे हैं।
बता दें कि जर्मनी से….. बंगाल के रास्ते भारत पहूँची होम्योपैथी की सालाना ग्रोथ 22% है जो जल्द ही चिकित्सा का प्रमुख विकल्प होने जा रहा है। भला क्यों नहीं, फ्रांस में तो 47.5 प्रतिशत होम्योपैथी की दवा खपत होती है। दुनिया के लगभग 100 देशों में लोग होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का लाभ ले रहे हैं तथा लगभग 50 देशों में होम्योपैथी को अलग औषधीय प्रणाली के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी है।
आज मुंगेर जिले के कल्याणपुर गांव की गलियों से निकलकर होम्योपैथी के सरताज डॉ.नीतीश चंद्र दुबे का परचम दुनिया में लहरा रहा है। इस यात्रा के पीछे डॉ.नीतीश का अथक परिश्रम है। ये दोनों नीतीश- मुख्यमंत्री ई.नीतीश और डॉ.नीतीश द्वारा जन सेवा को ही सर्वोपरि समझा जाता है। एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा के दौरान ही इनकी नींद पूरी होती है। भारत रत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित होने के चलते ये दोनों नीतीश यही कहते हैं….. आपके पास एक बड़ा उद्देश्य हो और सपना हो तो वो सोने नहीं देता है।
चलते-चलते यह भी बता दें कि संपूर्ण विश्व के बड़े-बड़े मंचों पर दोनों नीतीश को बुलाया जाता है…… मुख्यमंत्री ई.नीतीश को पीएम मटेरियल कह कर नवाजा जाता है तो डॉ.नीतीश को लंदन में मेडिकल के छात्रों को होम्योपैथ के महत्व को बताने के लिए आमंत्रित किया जाता है। कभी डॉ.नीतीश को जर्मनी तो कभी स्विट्जरलैंड में अवार्ड देकर सम्मानित किया जाता है। हाल ही में डेलहाइट्स की ओर से डॉ.नितीश को डॉ.त्रेहान के साथ सम्मानित किया जा चुका है। और तो और विगत नवंबर में ब्रिटिश पार्लियामेंट में आयोजित भारत कांक्लेव के दौरान भी डॉ.नीतीश को सम्मानित किया गया था।