Indian Army Medals

मुफलिसी में शहीदों की ‘शहादत’ को मिले ‘सम्मान’ का सौदा करना पड़ता है परिजनों को

दो-दो हजार में ही बिक गये भारतीय शहीदों के वीरता पदक ! सैनिकों के वीरता पदकों का सौदा देश के लिए किसी विडंबना से कम है क्या ? इन पदकों को बेचने वाले कोई और नहीं बल्कि शहीदों के लाचार माता-पिता या फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए बेबस उनकी पत्नी या परिजन इस शर्त पर मेडल बेचते हैं कि खरीदने वाले कभी किसी को उनका नाम नहीं बताएंगे।

कितनी विडंबना है ! जो पिता अपने इकलौता सैनिक बेटे को बचपन में कंधे पर घुमाया करता वही लाचार बाप आज उस शहीद हुए सैनिक बेटे को कंधा देता है और 3 साल का शहीद-पुत्र अपने पिता को मुखाग्नि ! उसी लाचार बाप और अबोध सैनिक-पुत्र की परवरिश के लिए सैनिक की विधवा पत्नी लाचार होकर पति की ‘शहादत’ को मिले ‘सम्मान’ का सौदा करने, दुनिया की नजर से बचकर, किसी दुकान में जाती है। कोई रोटी के लिए तो कोई बच्चे की फीस के लिए सीने पर पत्थर का टुकड़ा रखकर उस अनमोल निशानी को बेमोल बेच देती है। देश कब जगेगा और सोचेगा उन शहीदों के लिए…..।

बता दें कि लुधियाना, पंजाब का एक शख्स है इंजीनियर नरिन्दर पाल सिंह। वह एक गैरतमंद इंसान है जो लुधियाना में ‘अकाली सहाय म्यूजियम’ चलाते हैं। वहीं विगत 5 साल में सैनिकों के 300 और स्वतंत्रता सेनानियों के लगभग 200 अनमोल मेडल 2-2 हजार तक में खरीदते और सहेजते आये हैं। वे ऐसे नेक दिल और प्रतिष्ठित इंसान हैं कि बेचने वालों का नाम किसी को नहीं बताते हैं।

यह भी बता दें कि सैन्य परिवारों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव  मधेपुरी ने हाल ही में पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए 44 शहीदों के परिजनों के बैंक एकाउंट को सार्वजनिक करने हेतु प्रधानमंत्री, गृह मंत्री एवं रक्षा मंत्री को पत्र लिखा है ताकि बुद्ध – नानक – कबीर…. से लेकर भूपेन्द्र-भीम-कर्पूरी…. डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम सरीखे दानवीरों से प्रेरित भारतवासी यदि उनके खाते में एक-एक रुपए भी डालें तो करोड़ों रुपए… होंगे और शहीदों के परिजनों को ये दिन नहीं देखना पड़ेगा।

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