देश को नया विकल्प देने की बात करने वाला महागठबंधन क्या खत्म हो गया? जी हाँ, मायावती और ममता बनर्जी के अलग रास्ता अख्तियार करने के बाद लगता कुछ ऐसा ही है। तेजी से बदले घटनाक्रम में बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मंगलवार को साफ कर दिया कि चुनाव में वे कांग्रेस से अलग हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी जंग न सिर्फ भाजपा की अगुआई वाले एनडीए से होगी, बल्कि कांग्रेस से भी होगी।
स्पष्ट है कि सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और तीसरे बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में संभावित सहयोगियों के रुख ने न सिर्फ महागठबंधन को खारिज कर दिया है बल्कि कांग्रेस के लिए दूसरे राज्यों में भी चुनौतियां बढ़ा दी हैं। खासकर बिहार में इसका असर दिख सकता है। इन सबसे भाजपा के खिलाफ विपक्ष का बड़ा धड़ा बनाने की कांग्रेस की मुहिम खतरे में पड़ती दिख रही है।
बता दें कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया था। इसके पीछे सीधा संदेश था कि बसपा-सपा गठबंधन इन सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी माने या फिर कांग्रेस की अलग चुनौती के लिए तैयार रहे। पर कांग्रेस का दांव उसी के गले पड़ गया। मायावती ने दो कदम आगे जाकर स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस के साथ किसी भी राज्य में कोई समझौता नहीं होगा। यही नहीं, बसपा-सपा गठबंधन ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी दावा ठोक दिया है। उधर पिछले एक साल से लगातार विपक्षी दलों की बैठक में शामिल हो रहीं और अपने मंच पर कांग्रेस समेत दूसरे दलों को आने के लिए बाध्य कर रहीं ममता बनर्जी ने बंगाल की सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं।
रही बात बिहार की तो यहां भी आरजेडी-कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। बताया जा रहा है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सहयोगी दलों को साफ लहजे में बोल दिया है कि वे अपनी राजनीतिक हैसियत से ज्यादा न मांगे। यह बयान कांग्रेस के लिहाज से खासतौर पर अहम है क्योंकि पार्टी ने यहां अपने कद से बड़ा मुंह खोल रखा है।
अन्य राज्यों की बात करें तो तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से साथ मिलकर लड़े आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू का रुख भी अब बदला-बदला है। प्रदेश की जनता को वह बताते फिर रहे हैं कि कांग्रेस के साथ केंद्र की रणनीति अलग है, लेकिन राज्य विधानसभा चुनाव में उनका कांग्रेस के साथ कोई लेना-देना नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच समझौते को भी खारिज ही किया जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्षी दलों का एक साझा घोषणापत्र तैयार करने की जो कवायद शुरू हुई थी अब उसका क्या होगा। ध्यान रहे कि अब तक विपक्षी दलों के जमावड़े में 21 दलों को गिना जाता था और इसमें बसपा, सपा, तृणमूल कांग्रेस, टीडीपी और आप भी शामिल हुआ करती थीं। इन दलों के बिना क्या महागठबंधन का कोई अस्तित्व रह जाएगा?