पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। यह कि 7 लाख अस्सी हज़ार जवानों को दिल्ली-श्रीनगर एवं जम्मू-श्रीनगर रूट पर आने-जाने के लिए नियमित विमान सेवा उपलब्ध कराई जाएगी।
बता दें कि कश्मीर में सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स की 65 बटालियनों में 65 हज़ार जवान तैनात हैं। यहाँ पर बीएसएफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल एवं राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की ईकाइयाँ भी आंतरिक सुरक्षा के विभिन्न मोर्चों पर तैनात किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा अर्धसैनिक बलों के जवानों की सुरक्षा के लिए घोषित इस फैसले को देशभक्त बुद्धिजीवियों ने सराहा है। साथ ही कुछ संवेदनशील साहित्यकारों ने यह भी कहने से बाज नहीं आया कि एक साथ 45 जवानों की कीमती जान जाने के बाद ही सरकार की आंखें खुली ?
यह भी बता दें कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में यह कहा गया है कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के सभी जवानों को यह सुविधा मिलेगी। ड्यूटी ज्वाइन करने, ट्रांसफर पर जाने, टूर या छुट्टी पर जाने के लिए जवान अब विमान से यात्रा कर सकेंगे। यह सुविधा अब तक मिलती तो थी लेकिन इंस्पेक्टर रैंक से ऊपर के अधिकारियों को ही मिलती थी।
चलते-चलते यह भी बता दें कि जहाँ गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार अर्धसैनिक बलों के सभी जवान व्यावसायिक उडान से कश्मीर आने-जाने की टिकट बुक करा कर यानी पॉकेट से पैसे लगाकर यात्रा करेंगे और बाद में अपने संगठन या बल के माध्यम से खर्च की गई राशि का पुनर्भुगतान प्राप्त कर सकेंगे। वहीं इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक सेवानिवृत्त सैनिक ने कहा कि यदि वह सैनिक शहीद हो जाए तो उसके तीन-चार वर्षीय इकलौते पुत्र को वह राशि वापस लेने में कितने वर्ष लगेंगे…..?
क्या सांसद एवं विधायकों की तरह उन सैनिकों को सरकार की ओर से कूपन मुहैया नहीं किया जा सकता ?