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कलाम, कलाम थे… सिर्फ कलाम..!

आज भी एक दिन है बाकी दिनों की तरह… कमोबेश सबकी दिनचर्या भी आम दिनों की तरह ही होगी… हम, हमारा घर, पास-पड़ोस, गांव-शहर, राज्य, देश और दुनिया अपनी परिधि और परिवेश में अपने-अपने हिस्से की भूमिका निभा रहे होंगे। नंगी आंखों से देखें तो सब कुछ वही है जो कल था। हाँ, सब कुछ वही है… सिवाय एक परिवर्तन के। और वो परिवर्तन बस इतना है कि हमारे-आपके जैसा एक हाड़-मांस का व्यक्ति, दो हाथ, दो पैर, दो आँखों वाला व्यक्ति कल शाम तक खड़ा था और आज लेटा हुआ है। लेटता तो वो 84 साल से रहा था लेकिन इस बार उसे नींद जरा गहरी आ गई। “पृथ्वी को रहने लायक कैसे बनाया जाय” इस पर सोचते-सोचते उसने ये पृथ्वी ही छोड़ दी। क्या ये पृथ्वी उसके रहने लायक नहीं रह गई थी..? या फिर इसे रहने लायक कैसे बनाया जाय ये सोचने को एक आत्मा ने अपनी वर्तमान काया को छोड़ना ही मुनासिब समझा..? मित्रो, यही वो बिन्दु है जहाँ किसी के भी ना रहने और एपीजे अब्दुल कलाम के ना रहने का फर्क समझ में आता है। और इस फर्क को समझकर ही हम समझ पाएंगे कि कल और आज में क्या फर्क है..? कल क्या था जो आज हमने खो दिया..?

हाँ मित्रो, कलाम नहीं रहे। कौन थे कलाम..? महान वैज्ञानिक..? बेमिसाल शिक्षक..? मिसाईलमैन..? पोखरण के नायक..? भारतरत्न..? भारतीय गणतंत्र के भूतपूर्व राष्ट्रपति..? ईमानदारी से बतायें, क्या ये सारे जवाब मिलकर भी एक कलाम को पूरा परिभाषित कर पाएंगे..? नहीं… बिल्कुल नहीं। सच तो ये है कि इनमें से कोई एक विशेषण भी किसी को गौरवान्वित करने के लिए काफी है और जब ये सारे विशेषण मिलकर भी किसी एक व्यक्ति को परिभाषित ना कर पा रहे हों तो उसके कद और उसकी हद की कल्पना क्या की जा सकती है..?

बुद्ध, गांधी, मार्क्स, आईंस्टाईन और कलाम जैसे महामानव रोज-रोज नहीं आते। इन रत्नों को ईश्वर सहेज कर रखते हैं और बड़े मौके पर इन्हें धरती पर भेजते हैं। ऐसे लोग आते हैं और सदियों का अंधेरा दूर कर जाते हैं। बल्कि कहना तो ये चाहिए कि कलाम जैसे लोग रोशनी को भी रोशनी दिखा जाते हैं। आज जहाँ ‘मनुष्यता’ दिन-ब-दिन अपनी शर्मिन्दगी के बोझ तले दबती जा रही है वहाँ किसी ‘कलाम’ की ही बदौलत एक मनुष्य के रूप में हम सिर उठा पाते हैं।

कलाम अब सशरीर हमारे बीच नहीं होंगे लेकिन हमारी सोच, हमारे सपनों से उन्हें भला कौन दूर कर सकता है। हमारी आनेवाली पीढ़ियां जब अपना लक्ष्य तय करेंगी, तब कलाम ही टोक रहे होंगे कि “छोटा लक्ष्य एक अपराध है”… और जब-जब हम आँखे बन्द कर सपने देखेंगे, तब कलाम ही हमें बता रहे होंगे कि “सपने वो नहीं जो हम बंद आँखों से देखते हैं, सपने तो वो हैं जो हमें सोने नहीं देते”। फेल (FAIL) को फर्स्ट अटेम्प्ट इन लर्निंग, एंड (END) को एफर्ट नेवर डाइज और नो (NO) को नेक्स्ट अपॉर्चुनिटी कहने का जीवन-दर्शन हमें कलाम से ही मिल सकता है और सफलता की गूढ़ पहेली कलाम ही इतनी आसानी से सुलझा सकते हैं कि “सफलता का रहस्य सही निर्णय है, सही निर्णय अनुभव से आता है और अनुभव गलत निर्णय से मिलता है।”

आज की ‘फेसबुक पीढ़ी’ की रुचि और आदर्श पल-पल बदला करते हैं लेकिन कलाम इस पीढ़ी के लिए भी कितने बड़े आदर्श थे और वो भी कितनी रुचि के साथ इसे सोशल मीडिया में उनके लिए उद्गारों की बाढ़ से सहज समझा जा सकता है। ये जानने के लिए कि सूरज की तरह चमकने के लिए सूरज की तरह ही जलना होगा, इस पीढ़ी के पास कलाम से बड़ा आदर्श कोई दूसरा था भी तो नहीं। यू.एन.ओ. ने कलाम के जन्मदिवस 15 अक्टूबर को ‘इंटरनेशनल स्टूडेन्ट्स डे’ घोषित कर एक भविष्य के ‘द्रष्टा’ और ‘निर्माता’ शिक्षक को बहुत सही श्रद्धांजलि दी है।

कलाम को किसी भी कोण से देख लें, देखने वाले का धन्य हो जाना तय है। गीता का कर्मयोग समझना हो तो कलाम के जीवन में एक बार झांक लेना काफी होगा। ‘स्थितप्रज्ञ’ होना क्या होता है इसे समझने के लिए कलाम से बेहतर उदाहरण हो नहीं सकता। सादगी और सहजता कितनी बड़ी पूंजी है गांधी के बाद किसी ने समझाया तो वो कलाम ही थे। जीवन का हर पल कैसे साधना का पर्याय हो सकता है इसकी गवाही तो उनके जीवन का आखिरी पल भी दे गया।

कलाम ‘महा’मानव थे, इसके अधिक मायने ये रखता है कि कलाम ‘पूर्ण’ मानव थे। और मानव जब पूर्णता को छूता है, देवत्व भी झुक जाता है। सच तो ये है कि कलाम हर ‘विशेषण’ से ‘विशेष’ थे। कलाम, कलाम थे… सिर्फ कलाम..!

– मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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