कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेन्द्र यादव 2008 के राष्ट्रीय आपदा कुसहा-त्रासदी से लगातार कोसी के किसानों को जगाते रहे हैं और उनकी समस्याओं से अहर्निश जूझते रहे हैं। हाँ ! किसानों की चुनौतियों से जूझने में इन्हें समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी सरीखे अनेक बुद्धिजीवियों एवं आद्यानंद यादव व शंभू शरण भारतीय जैसे किसानों के हित के लिए सकारात्मक सोच रखने वालों से निरंतर सहयोग मिलता रहा है।
बता दें कि भले ही राजनीतिक रूप से मधेपुरा जिला देश व प्रदेश में चर्चा में रहता हो परंतु इस जिले के किसानों को दोहरी चुनौतियों से जूझना पड़ता है। उनके जीवन से जुड़े सवाल राजनीतिक फलक पर नहीं आ पाते हैं। इसलिए यहाँ के किसानों को अपने अस्तित्व के लिए जीवन संघर्ष के साथ-साथ नवनिर्माण की नई इबादत अपने बल पर लिखनी होगी वरना किसानों का पलायन रुकने का नाम नहीं लेगा।
यह भी जानिए कि यहाँ के तकरीबन साढ़े चार सौ गाँवों में बसनेवाले किसान अपनी लगभग दो लाख एकड़ उपजाऊ जमीन पर खुद ही मेहनत के बल पर गेहूँ, धान, मक्का , मूंग , आलू , पटुआ आदि फसलें भारी पैमाने पर तो उगा ही लेते हैं परंतु छोटी खेती वाले लोग यूपी, पंजाब और हरियाणा में जाकर मौसमी मजदूरी करने लगते हैं। क्योंकि सीट के आधार पर न्यूनतम लाभकारी मूल्यों की बात तो दूर……. वर्तमान निर्धारित समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाता है किसानों को। तभी तो महंगी होती जा रही है खेती की लागत के बीच इस वर्ष के निर्धारित मक्के के बाजार मूल्य ₹9 प्रति किलो पर बेचने को किसान मजबूर होते रहे हैं।
जानिए कि ऐसी ही चुनौतियों के बीच अवसर पैदा करने की जरूरत है। किसान भाइयों ! संगठित होकर खेती आधारित उद्योगों को खड़ा करें और बाजार से मुकाबला करने का अवसर ढूंढ निकाले। सोचिए, किसानों के घर से छोटे व्यापारी धान लेजाकर बड़े व्यापारी को देते हैं जो चावल बनाकर पुनः बाजार में भेजते हैं। इस प्रक्रिया में कई जगह लोग मुनाफा कमाते हैं। यदि किसान फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी या सहकारिता के माध्यम से ऐसा ही करें तो आधे दर्जन से अधिक जगहों पर तैयार फसल पर मुनाफा कमाने वाले व्यापारियों का मुनाफा रुक जाएगा। ऐसी ही छोटी-छोटी कोशिशें बड़ी-बड़ी संभावनाओं को जन्म दे सकती हैं।