Chhath Puja in Bihar

घर से घाट तक….. लोक आस्था का (चार दिवसीय) महापर्व छठ !

महापर्व छठ देखकर बिहार की ऊँचाई को देश ही नहीं विदेश के लोग भी महसूसते रहे हैं। सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है छठ जिसमें मुस्लिम और अन्य धर्मावलंबी भी बढ़-चढ़कर लेते हैं भाग…..। कहीं कोई कलह-कोलाहल नहीं…. कई जगह पर तो मुस्लिम महिलाएं भी करती हैं छठ। इस पर्व के अवसर पर दूर देशों में रहने वाले लोगों को भी खींच लाती है अपनी सरजमीन…..।

बता दें कि देश में ही नहीं…… विदेशों में भी एक दिन कद्दू भात, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की अद्भुत छटा विखेरते रहे हैं सात समंदर पार के लोग। सिंगापुर से लेकर बहरीन…… मॉरीशस से लेकर कैलिफोर्निया में बसे बिहारियों में छठ पर्व को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। सूर्योपासना के इस महापर्व छठ के साथ-साथ पद्मश्री शारदा सिन्हा के कर्णप्रिय छठि मैया के गीतों पर देशी महिलाऔं के साथ-साथ विदेशी महिलाएं भी झूम उठती हैं।

यह भी जानिए कि छठ ही एक ऐसा पर्व है, जिसकी पूरी सत्ता मातृ प्रधान है। इस पर्व में महिलाएं स्वामिनी की भूमिका में होती हैं और पुरुष सेवक भाव में खड़ा दिखता है। महिलाएं अर्घ्य – गीत गाती हुई घाटों की ओर जा रही होती हैं तो पुरुष अपने माथे पर पूजन सामग्रियों की टोकरी लिए हुए चलते दिखते हैं…… यानी घर से घाट तक यह पुरुष प्रकृति के सामने नतमस्तक दिखता है। तभी तो प्राचीन भारतीय समाज में पुत्र अपनी मां के नाम से जाना जाता था।

बच्चों को यह जानना जरूरी है कि यह छठ पर्व हमें देता है- प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश। सूर्योपासना का यह पर्व हमें प्रकृति के करीब तो लाता ही है साथ ही किसी भी प्रतिकूल परिणाम को अनुकूल बना देता है। जब लोग जल में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं तो हानिकारक पराबैंगनी किरणें अवशोषित होकर ऑक्सीजन में परिणत हो जाती है और लोग उन किरणों के कुप्रभावों से बचते हैं। यह भी सच है कि सूर्य ही जल के स्रोत को राह देता है।

आगे यह भी जानिए कि इस पर्व के केंद्र में कृषि, किसान और मिट्टी है। हर फल व सब्जी इस पर्व का प्रसाद है। मिट्टी के बने चूल्हे पर हर तरह का प्रसाद बनाया जाता है तथा बांस से बनी सूप में पूजन सामग्री रखकर अर्घ्य दिया जाता है। बाट से लेकर घाट तक की सफाई की जाती है। आपदा प्रबंधन व सुरक्षा व्यवस्था हेतु प्रशासन एवं पब्लिक दोनों सचेत दिखते हैं।

छठ पर्व पर गाए जाने वाले गीतों में एक गीत बेटी मांगने वाला भी है। हमारे बिहार के  ग्राम्य जीवन में ‘कुंवारे आंगन’ जैसे शब्द भी हैं यानी जिस आंगन में बेटी के विवाह के फेरे नहीं पड़े तो वह आंगन कुंवारा रह गया…. ऐसा माना जाता है। परंतु सरकार द्वारा प्रायोजित ‘बेटी बचाओ…… बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम अब इस महापर्व के जरिये प्रखरता से ऊंचाई ग्रहण करता जा रहा है…..!

सम्बंधित खबरें