प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है जो भाई के प्रति बहन के अगाध स्नेह को अभिव्यक्त करता है। बहनें अपने भाई की खुशहाली व सुख की प्राप्ति के साथ-साथ लंबी आयु एवं ऐश्वर्य की कामना करती हैं।
बता दें कि मिथिलांचल का अति महत्वपूर्ण भाई-बहन के अटूट प्रेम पर आधारित यह भैया दूज पर्व जिले के मुरलीगंज, उदाकिशुनगंज, आलमनगर, पुरैनी, शंकरपुर, घैलाढ़ आदि अन्य सभी प्रखंडों में सर्वाधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। हर आंगन में भैया दूज पर्व को लेकर काफी चहल-पहल देखी गई। रंगोली बना-बनाकर एवं नए-नए वस्त्र धारण कर अपने भाई के लिए अक्षत, चंदन, चांदी का सिक्का आदि-आदि के साथ इंतजार करती बहनों को भी बांट जोहती खड़ी देखी गईं।
यह भी जानिए कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मधेपुरा के सेवा केंद्र पर केंद्र प्रभारी राजयोगिनी बीके रंजू दीदी की टीम द्वारा लोक आस्था के इस पर्व “भैया दूज” के आध्यात्मिक रहस्य को विस्तार से बताया गया तथा शुक्रवार को धूमधाम से सभी भाइयों को आमंत्रित कर श्रद्धा पूर्वक यह पर्व मनाया गया। सत्कार पूर्वक भोजन भी कराया गया ……।
बता दें कि जहां सर्वप्रथम ब्रह्माकुमारी रंजू दीदी ने अपने संबोधन में यही कहा कि इस पर्व के अवसर पर बहन भाई के माथे पर सात रंग का टीका लगाती है जो आत्मा के सात गुणों को धारण करने की ओर इशारा करता है….. वहीं मुख्यवक्ता के रूप में मधेपुरा के भीष्म पितामह समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने कहा कि भौतिक संपन्नता के बावजूद आज मनुष्य दु:ख के रास्ते पर चल पड़े हैं तथा दु:खी होकर भय के वातावरण में जी रहे हैं। डॉ.मधेपुरी ने अंत में यही कहा कि जबसे ब्रम्हाकुमारी रंजू दीदी का मधेपुरा में आगमन हुआ है तब से इन्होंने कैंची की संस्कृति को नकारा है और सूई की संस्कृति को घर-घर फैलाया है।
मौके पर पूर्व प्रमुख विनय वर्धन उर्फ खोखा यादव, डॉ.गणेश प्रसाद यादव, डॉ.अजय कुमार, डॉ.एन.के.निराला, विजय वर्धन, दिनेश प्रसाद यादव, बीके जानकी, दुर्गा, संगीता आदि मौजूद थे।