भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महानिशीथ काल में हुआ था। कृष्ण ने देवकी के गर्भ में पलकर और रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेकर अपने दोनों माताएं ‘देवकी और रोहिणी’ को प्रसन्न किया। कृष्ण जन्म तो लिया मथुरा में परंतु उनका भी बचपन बीता गोकुल, नंदग्राम, वृंदावन और बरसाने में । कृष्ण के जन्मोत्सव के लिए यह पावन भूमि आज सज-धज कर तैयार है।
बता दें कि दुनिया के कोने-कोने से 20 लाख से कहीं ज्यादा श्रद्धालु योगेश्वर श्रीकृष्ण के 5242वें जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए ब्रज की भूमि पर पधार चुके हैं। अगणित सुरक्षा कर्मियों सहित ब्लैक कैट कमांडो को भी तैनात किया गया है। आज भारत के हर हिस्से के हर गांव और हर शहर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को उमंग एवं उत्साह के साथ लोग मना रहे हैं।
मधेपुरा भी किसी से पीछे नहीं रहा। अन्य कई जगहों के अतिरिक्त प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्थान की संचालिका राजयोगिनी ब्रम्हाकुमारी रंजू दीदी की टीम ने संपूर्ण समर्पण के साथ राधा-कृष्ण और लक्ष्मी नारायण को माखन खिलाया। बच्चियों द्वारा राधा-कृष्ण पर आधारित मनमोहक नृत्य का प्रदर्शन भी किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ मुख्य अतिथि समाजसेवी-साहित्यकार डॉ. भूपेन्द्र मधेपुरी, राजयोगिनी रंजू दीदी तथा खोखा यादव व दिनेश प्रसाद जैसे गणमान्यों द्वारा सम्मिलित रूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया। रंजू दीदी ने उपस्थित मातृशक्ति सहित सभी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि कृष्ण को हम सदा याद करें….. उनकी गीता का पाठ करें, जो ज्ञान का भंडार है।
मुख्य अतिथि डॉ.मधेपुरी ने अपने संबोधन के जरिये श्रीकृष्ण को श्रोताओं के समक्ष खड़ा कर दिया तथा उपस्थित बच्चे-बच्चियों एवं श्रद्धालु नर-नारियों से संक्षेप में बस यही कहा-
आप श्रीकृष्ण की तरह संपूर्णता में डूबकर ही किसी भी काम को करें। कल या फल की चिंता कभी ना करें। खुद कृष्ण बन जाँय- कृष्ण यानी कर्म ! कर्म से ही बजेगी आपके जीवन की बाँसुरी। यूँ कृष्ण को याद करना तो आसान है, परंतु श्रीकृष्ण को जीना बहुत कठिन है….।
डॉ.मधेपुरी ने पुनः कहा- योगेश्वर श्रीकृष्ण सरीखे अद्वितीय व्यक्तित्व के धारक जहाँ एक ओर सहज होकर गोपिकाओं के संग रास रचाते हैं वहीं दूसरी ओर युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता का गहन-गंभीर दर्शन भी सुनाते हैं। इस तरह के दो विपरीत ध्रुवों वाला जीवन केवल और केवल श्रीकृष्ण में होना ही संभव है। श्रीकृष्ण को दो माँ, दो बाप, दो पत्नी…… के अतिरिक्त एक तरफ बांसुरी…. दूसरी तरफ सुदर्शन….. ना जाने कितने विरोधाभाषों के बीच चैन की बंसी बजाता चला आ रहा है…. यह माखन चोर…. किसन कन्हैया……!!
अंत में राजयोगिनी रंजू दीदी के अध्यक्षीय भाषण के बाद प्रसाद वितरण के साथ ही कार्यक्रम समापन की घोषणा की गई।