सूबे बिहार में 3 लाख 70 हज़ार नियोजित शिक्षक कार्यरत हैं जिन्हें 20-25 हज़ार रूपये वेतन मिलता है | यदि पटना उच्च न्यायालय के न्यायादेश को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान लिया जाता तो इन शिक्षकों को 35-44 हज़ार रु. वेतन हो जाता |
बता दें कि 2017 में पटना हाईकोर्ट ने इन समाज के सृजनहार शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने का आदेश दिया था जिसके खिलाफ सूबे की सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई | सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई अब जुलाई के 31 तारीख को होगी |
यह भी जानिए कि शिक्षकों के वेतन का 70% केंद्र सरकार और 30% सूबे की सरकार देती है | इसलिए तो सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा भी है कि जब चपरासी को ₹36 हज़ार रूपये वेतन दे रहे हैं तो समाज के रक्षक और राष्ट्र निर्माता शिक्षकों को केवल 26 हज़ार क्यों ?
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा है कि केंद्र सरकार की रिपोर्ट का अध्ययन कर लें और 31 जुलाई के पहले अपना पक्ष काउंटर एफिडेविट के माध्यम से कोर्ट के सामने उपस्थित करें |
चलते-चलते यह भी बता दें कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को केंद्र सरकार इसलिए समान वेतन नहीं देना चाहती क्योंकि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से भी इस तरह की मांग उठने लगेगी…………|