झारखंड की राजनीति में जीते जी किंवदंती बन जाने वाले बागुन सुम्ब्रुई नहीं रहे। पूरी ज़िन्दगी केवल आधे शरीर को कपड़ा से ढंकने वाले सुम्ब्रुई ‘झारखंड के गांधी’ कहे जाते थे। आज शायद ही कोई यकीन करे लेकिन ये सच है कि पांच बार सांसद, चार बार विधायक और उससे पहले पांच बार मुखिया रहने वाले पूर्व मंत्री और कांग्रेस के अत्यंत वरिष्ठ नेता वस्त्र के नाम पर केवल एक धोती से काम चला लेते थे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनके निधन के बाद अपने ट्वीट में बिल्कुल सही कहा कि वे झारखंड की सच्चाई, सादगी और विनम्रता के प्रतीक, आदिवासी समाज की आवाज और गांधीजी के विचारों के सच्चे शिष्य थे। शुक्रवार शाम 96 वर्ष की उम्र में टाटा मेमोरियल अस्पताल में उनका निधन हो गया।
बागुन सुम्ब्रुई का जन्म 1924 में पश्चिम सिंहभूम जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के एक छोटे से गांव भूता में हुआ था। प्रारंभिक जीवन भूख, अभाव व गरीबी के बीच गुजरा। प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त की और फिर जिला स्कूल में पढ़ाई की, लेकिन गरीबी के कारण बीच में ही स्कूल छोड़ दर्जी का काम शुरू करना पड़ा। इसी बीच 1946 में 22 वर्ष की उम्र में गांव के मुंडा बन गये। यहीं से शुरू हुई राजनीतिक जीवन में कभी न रुकने वाली उनकी यात्रा।
लगभग 50 वर्षों से भी अधिक समय तक सिंहभूम की राजनीति का केन्द्र रहे सुम्ब्रुई की पहचान झारखंड से लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक रही। जयपाल सिंह के बाद इन्होंने झारखंड पार्टी की कमान संभाली और झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए चले आंदोलन की अग्रिम पंक्ति के नेता रहे। उनके नेतृत्व वाली झारखंड पार्टी ने 1969 के चुनाव में बिहार में 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वर्ष 1989 तक उनकी छवि एक ऐसे अपराजेय नेता की थी जिसे चुनाव में हरा पाना असंभव-सा था। सिंहभूम से पांच बार सांसद और चार बार विधायक रहे सुम्ब्रुई वर्ष 1999 में बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद वे झारखंड का पहले विधानसभा उपाध्यक्ष चुने गए।
सादा जीवन उच्च विचार का आजीवन अनुसरण करने वाले बागुन सुम्ब्रुई ने डायन प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की थी। अपनी धुन और अपने सिद्धांत के इतने पक्के थे वे कि 1970 में अविभाजित बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय, जिनकी सरकार सुम्ब्रुई की झारखंड पार्टी के 11 विधायकों के समर्थन से चल रही थी, द्वारा बिहार राज्य पथ परिवहन में काम करने वाले एक आदिवासी कंडक्टर के निलंबन को वापस लेने के अपने अनुरोध के नहीं सुने जाने के कारण उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया था। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की सरकार बनी, जिसमें सुम्ब्रुई परिवहन एवं वन कल्याण मंत्री बने और मंत्री बनते ही उन्होंने सबसे पहले उस कंडक्टर का निलंबन वापस लिया। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।