जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने क्यों बदली राह ?

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ भाजपा का तीन साल पुराना बेमेल गठबंधन आखिरकार टूट गया। भाजपा ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत गठबंधन से अलग होने का कड़ा फैसला लिया और बड़ी सफाई से ठीकरा पीडीपी के सिर फोड़ा। वहां विधानसभा में राजनीतिक दलों की जो शक्ति है उसे देखते हुए यह तयप्राय है कि परिस्थिति सामान्य होने तक राज्य में राज्यपाल शासन ही रहेगा और फिर से चुनाव के बाद ही कोई नई सरकार दिखेगी।
देखा जाय तो जम्मू-कश्मीर में चार महीने के असमंजस और मशक्कत के बाद सरकार गठन के साथ ही उसकी उलटी गिनती भी शुरू हो गई थी लेकिन भाजपा विपरीत विचारधारा के साथ भी सरकार चलाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश देना चाह रही थी। यही कारण है कि संघ की असहमति के बावजूद वह पीडीपी के साथ सरकार में थी। लेकिन तीन साल में जिस तरह मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और पीडीपी ने अपना आधार मजबूत करने के लिए अलगाववादियों के प्रति नरमी और जम्मू या लद्दाख की बजाय घाटी पर ध्यान केंद्रित रखा उसने भाजपा को परेशान कर दिया।
भाजपा जम्मू-कश्मीर में किस कदर परेशान हो चली थी इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि गठबंधन तोड़ने की घोषणा करने आए राष्ट्रीय महासचिव राम माधव के तेवर कुछ ऐसे थे जैसे कश्मीर के बारे में विपक्षी दलों के हुआ करते हैं। उन्होंने एक तरफ से आतंकी घटनाएं बढ़ने, कानून व्यवस्था ध्वस्त होने, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र को नजरअंदाज किए जाने का आरोप लगाया। जबकि तीन साल तक भाजपा सरकार का हिस्सा भी रही है और केंद्र सरकार की ओर से आतंकियों के सफाए का दावा भी होता रहा है। यही नहीं कश्मीर में माहौल बदलने के लिए पीठ भी थपथपाई जाती रही है। लेकिन अब राग एकदम अलग है।
दरअसल भाजपा को अपनी गलती का अहसास उस वक्त पूरी तरह हो गया था जब रमजान के वक्त ऑपरेशन रोके जाने के बावजूद आतंकियों ने अपनी बंदूक नहीं छोड़ी और महबूबा इससे ऐतराज जताने की बजाय सस्पेंशन आफ ऑपरेशन को लागू करने की बात करती रहीं। महबूबा एक तरफ पत्थरबाजों को माफ करती रहीं और दूसरी तरफ सेना के मेजर गोगोई पर एफआइआर कर अपने कट्टरपंथी समर्थकों को खुश करने में जुटी रहीं। इतना ही नहीं हाल में कठुआ की घटना के बाद महबूबा सरकार पर सवाल उठा रहे मंत्रियों को भी जाना पड़ा। बताते हैं कि इन घटनाओं के कारण खासतौर से जम्मू क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ताओं व समर्थकों में बेहद रोष था।
एक अटकल यह है कि देर सबेर पीडीपी भी गठबंधन तोड़ने के बारे में सोच रही थी। ऐसे में भाजपा के लिए इससे उपयुक्त समय नहीं हो सकता था। गठबंधन तोड़ने के साथ ही भाजपा की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि केंद्र से प्रदेश को 80 हजार से एक लाख करोड़ रुपये का विकास पैकेज दिया गया। लेकिन महबूबा इसका लाभ प्रदेश को नहीं पहुंचा पाई। बताते हैं कि भाजपा में गठबंधन तोड़ने का फैसला एक दिन पहले ही हो गया था लेकिन शीर्ष नेतृत्व स्थानीय नेतृत्व से औपचारिक चर्चा के बाद ही इसकी घोषणा करना चाहता था। बहरहाल, अब भाजपा वहां खुलकर अपना राष्ट्रवाद का एजेंडा अपनाएगी और उसका फायदा 2019 में देश भर में उठाना चाहेगी।

 

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