उपचुनावों का परिणाम: भाजपा के लिए खतरे की घंटी

भाजपा अभी कर्नाटक के झटके से उबर भी नहीं पाई थी कि उसे एक और झटका लग गया। 11 विधानसभा और 4 लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। 4 में से केवल एक संसदीय सीट (महाराष्ट्र के पालघर) पर भाजपा उम्मीदवार की जीत हुई, जबकि 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में उसके खाते में केवल एक सीट आ पाई। शेष 10 सीटें विपक्षी दलों ने जीतीं। बिहार के जोकीहाट में भी एनडीए उम्मीदवार जदयू के मुर्शीद आलम को हार का सामना करना पड़ा। यहां से आरजेडी उम्मीदवार शाहनवाज आलम ने 41 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की।
उधर देश की सियासत तय करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां की कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस सीट से विपक्ष समर्थित रालोद उम्मीदवार की जीत हुई। यहां की नूरपुर विधानसभा सीट भी भाजपा के खाते से निकलकर सपा के खाते में चली गई। इन चुनावी नतीजों के बाद सियासी चर्चा का बाजार खासा गर्म है। चर्चा हो रही है कि क्या भाजपा की लोकप्रियता और वोट प्रतिशत में गिरावट आई है? अगर हां तो क्या अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार होगी?
बहरहाल, इस संदर्भ में एबीपी न्यूज चैनल का आकलन है कि अगर वोटिंग का यही पैटर्न रहा तो भाजपा की आगे की राह मुश्किल हो सकती है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों को लें तो 2014 के आम चुनावों में एनडीए को यहां 73 सीटें मिली थीं, जबकि मात्र 5 सीट पर सपा और 2 सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी। बसपा और रालोद को एक भी सीट नहीं मिल सकी थी। तब एनडीए को कुल 43 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 42 प्रतिशत का था। उधर कांग्रेस को 12 प्रतिशत और शेष वोट अन्य के खाते में गए थे। पर हालिया चुनावों ने इस गणित को गड़बड़ा दिया है।
हाल में हुए चुनावों के पैटर्न को देख चैनल का अनुमान है कि अभी चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश में एनडीए के खाते में 35 प्रतिशत वोट जबकि सपा और बसपा गठजोड़ को 46 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। यानि चार सालों में भाजपा को कुल 8 प्रतिशत का नुकसान होते दिखाया गया है जबकि सपा-बसपा गठजोड़ को 4 प्रतिशत वोट का इजाफा होता दिखाया गया है। इतना ही नहीं, अगर सपा-बसपा और कांग्रेस तीनों का गठजोड़ यहां होता है तो इस गठबंधन को करीब 60 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं और 2014 में 73 सीटें जीतकर सनसनी फैला देने वाली भाजपा (एनडीए) महज 19 सीटों पर सिमट सकती है, जबकि शेष 61 सीटें विपक्षी दलों के खाते में होंगी।
सबसे अहम बात यह कि अगर विपक्षी दलों की अभी दिख रही एकता आगे भी बनी रहे तो कमोबेश यही स्थिति अन्य राज्यों में भी हो सकती है। ऐसे में भाजपा और एनडीए की आगे की रणनीति क्या होगी, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा और उससे भी अधिक उत्सुकता इस बात की रहेगी कि एनडीए में मोदी के बाद सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन परिस्थितियों में आगे क्या रुख अख्तियार करेंगे..?

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