Hari Shankar Shrivastav Shalabh along with Dr.Bhupendra Narayan Madhepuri releasing Aahat Mann Ke Dohe by Dr.G.P.Sharma at Saharsa.

विरह-वेदना युक्त ‘आहत मन के दोहे’ का लोकार्पण !

कोसी कमिश्नरी मुख्यालय की धरती पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष डॉ.जी.पी.शर्मा की अध्यक्षता में इन्हीं के द्वारा रचित विरह-वेदना से भरे “आहत मन के दोहे” के विमोचनकर्ता वरिष्ठ साहित्यकार व इतिहासकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने विरह को प्रेम की जाग्रत गति बताया और कहा कि डॉ.शर्मा के अन्तसतल की गहराई में ‘एकाबरी’ के लिए जो विरह पल रहा है वह जीवन का शाश्वत एवं सजीव प्रेम बनकर संसार को सुरभिमय बनाता रहेगा | उन्होंने विश्व वान्ग्मय में ‘विरह-काव्य’ को सबसे प्राचीन विधा बताया |

बता दें कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने विश्व की प्राचीनतम ग्रंथ ‘ऋग्वेद’ में वर्णित पुरुरवा एवं उर्वशी की विरह-वेदना के वर्णन को अद्भुत, अद्वितीय एवं अतुलनीय बताते हुए कहा कि विरह-वर्णन को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करना कठिन होता है बल्कि उसे केवल महसूसा जा सकता है |

यह भी जानिए कि लोकार्पण समारोह में उपस्थित नामचीन साहित्यकारों उमेशचन्द्र आचार्य, सियाराम यादव मयंक, श्यामानंद लाल दास ‘सहर्ष’, मुर्तजा नरियारवी आदि ने भी अपनी कविताओं और गजलों की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम को विस्तार देते हुए चर्चित बना दिया | अंत में अध्यक्ष डॉ.शर्मा ने अवरुद्ध कंठ से चंद शब्दों में आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी |

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