मदर्स डे: कुछ अनुभूतियां

मां से छोटा
और ताकतवर
शब्द कोई और हो… तो बताना..!

गम को छिपाकर
वो कहां रखती है
गर तुम्हें मालूम हो… तो दिखाना..!

मौत के रास्ते हैं बहुत
ये मैंने, तुमने, सबने जाना
पर बात जब सृजन की हो
मां की कोख में ही होता है आना..!

मां अनपढ़ हो तब भी
गणित में बड़ी दिलदार होती है
दो रोटी मांग कर देखो
वो हरदम चार देती है..!

साल में एक दिन
मदर्स डे आता है
सब कहते हैं आज
मां का दिन है
कोई तो बतलाए
दिन कौन-सा मां के बिन है..!

ईश्वर ने सृष्टि को रचकर
उसे करीने से सजाया
पर हर बच्चे को पालने में
स्वयं को सक्षम नहीं पाया
तब हारकर उसने मां को बनाया..!

मां वो है
जो बच्चों के पथ में फूल बिछा
स्वयं कांटों पर चल लेती है
मां वो है
जो बच्चों के आज की खातिर
अपना सारा कल देती है..!

सोचो किस कदर वही मां
खून के आंसू रोती होगी
जब घर के बंटवारे में
छाती के टुकड़े ढोती होगी..!

धरा-आसमां बंट जाए सब
मां कब-कहां बंटती है
गोद इतनी विशाल उसकी
पूरी कायनात उसमें अंटती है..!

[डॉ. मधेपुरी की कविता]

 

सम्बंधित खबरें