साढ़े तीन अरब साल पहले सूख गईं मंगल की झीलें

कहना गलत ना होगा कि मंगल ग्रह दूसरे ग्रह पर जीवन की संभावनाएं तलाश रहे दुनिया भर के खगोलविदों के कौतूहल का केन्द्र बना हुआ है। हम और आप भी इस कौतूहल से बचे हुए नहीं हैं और ज्यों-ज्यों इसके बारे में जानकारियां हासिल होती जा रही हैं, कौतूहल भी उसी अनुपात में बढ़ता जा रहा है। आप जानते ही होंगे कि इस ग्रह को लेकर सर्वाधिक उत्सुकता इस बात की रही है कि वहां पानी की मौजूदगी है या नहीं? इस बाबत हुए गहन शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मंगल ग्रह का पर्यावरण कभी तरल पानी के अनुकूल था। पर यक्ष प्रश्न जो बच गया थो वो यह कि क्या वो पानी अब भी मौजूद है? और अगर वो वर्तमान में मौजूद नहीं तो अतीत में उसकी मौजूदगी वहां कब तक थी?

इस उत्सुकता को शांत करने के लिए मंगल ग्रह पर फैले नदियों के अवशेषों का अध्ययन किया गया जिससे इस बात की पुष्टि हुई है कि वहां करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भारी मात्रा में पानी मौजूद था और फिर कालांतर में वहां की सभी झीलें सूख गईं। जी हाँ, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह दावा लाल ग्रह की सतह पर मौजूद लंबी दरारों का अध्ययन करने के बाद किया है। इन दरारों की खोज अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने 2017 की शुरुआत में की थी।

बता दें कि कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में प्राचीन काल में पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह के मौसम से जुड़ी जानकारियों पर से भी पर्दा उठाया है। वैज्ञानिक नैथनील स्टीन का कहना है कि किसी भी प्राकृतिक जलस्त्रोत की तलछट के हवा के संपर्क में आने से सूखी दरारों का निर्माण होता है। ये दरारें झीलों के किनारे की जगह उनके केंद्र के नजदीक स्थित हैं। इससे स्पष्ट है कि समय के साथ इन झीलों के स्तर में उतार-चढ़ाव भी होता था। जियोलॉजी जर्नल में छपे इस शोध के अनुसार पृथ्वी की तरह मंगल के झरने भी एक ही तरह के चक्र का पालन करते थे। इस अध्ययन से लाल ग्रह पर मौजूद झील की प्रणालियों के विषय में जानकारियां सामने आएंगी।

बहरहाल, इस अध्ययन को क्यूरियोसिटी रोवर के मिशन का दूसरा अध्याय कहा जा रहा है। अभी बहुत सी रोमांचक जानकारियों से पर्दा उठना बाकी है। तब तक हम और आप स्वतंत्र हैं अपनी रुचि और कल्पनाओं का लोक वहां बसाने के लिए।

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