विजया दशमी के दिन पांच राज्यों को नए राज्यपाल मिले। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस दिन बिहार, तमिलनाडु, असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के राज्यपाल एवं अंडमान और निकोबार के उपराज्यपाल की नियुक्ति की। भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष रहे सत्यपाल मलिक बिहार के नए राज्यपाल होंगे, जबकि बनवारी लाल पुरोहित को तमिलनाडु जगदीश मुखी को असम और ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीडी मिश्रा को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। वहीं बिहार का राज्यपाल रहते हुए राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने वाले कोविंद ने इन नियुक्तियों में बिहार का विशेष ख्याल रखते हुए बिहार भाजपा के पुराने नेता गंगा प्रसाद चौरसिया को मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया है। इन पांच राज्यों के राज्यपाल के अतिरिक्त केन्द्रशासित अंडमान और निकोबार के उपराज्यपाल के तौर पर राष्ट्रपति ने एडमिरल (सेवानिवृत्त) देवेन्द्र कुमार जोशी को मौका दिया है।
गौरतलब है कि बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही यहां राज्यपाल का पद रिक्त था। कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी को बिहार का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक इससे पूर्व केन्द्रीय संसदीय और पर्यटन राज्यमंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। बीएससी और एलएलबी की डिग्री लेने वाले मलिक 1980-84 और 1986-89 तक राज्यसभा के सांसद और 1989-90 में लोकसभा के सांसद रहे हैं।
उधर मेघालय के राज्यपाल बनाए गए गंगा प्रसाद चौरसिया शुरू से जनसंघ के सदस्य रहे हैं। 1994 में वे पहली बार बिहार विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए और कुल 18 सालों तक परिषद के सदस्य रहे। वे बिहार भाजपा के महामंत्री भी रह चुके हैं। इसके अलावा वे बिहार राज्य आर्य प्रतिनिधि सभा, बिहार राज्य खाद्यान्न व्यवसायी संघ. अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन और अखिल भारतीय चौरसिया महासभा जैसे संगठनों में भी सक्रिय रहते आए हैं।
कुल मिलाकर इन नियुक्तियों में भाजपा ने अपने लोगों को ‘वफादारी’ का इनाम दिया है। सत्यपाल मलिक और गंगा प्रसाद चौरसिया की तरह ही दिल्ली भाजपा के जगदीश मुखी भी पार्टी के पुराने वफादार रहे हैं। इसी तरह अन्य लोगों की प्रतिबद्धता भी केन्द्रासीन भाजपा के प्रति असंदिग्ध है। देखा जाय तो केन्द्र की सत्ता पर काबिज पार्टी द्वारा इस तरह ‘मलाई’ का वितरण कोई नई बात नहीं। नया बस यह है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद के लिए (वैसे देश के प्रथम व्यक्ति का पद भी अपवाद नहीं) ‘राजनीतिक तौर पर छोटा कद’ होना अब लगभग अनिवार्य हो गया है।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप