अब जबकि चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला दल ही असली जेडीयू है और उनकी राज्यसभा सदस्यता जाने में औपचारिकता भर शेष है, फिर भी शरद यादव यह मानने को तैयार नहीं कि पार्टी के भीतर की लड़ाई वे हार चुके हैं। हां, उन्होंने इतना जरूर कहा कि हम पहाड़ से लड़ रहे हैं तो यह सोच कर ही लड़ रहे हैं कि चोट लगेगी ही।
दरअसल, जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष पार्टी और राज्यसभा की सदस्यता पर मंडराते संकट पर अपना पक्ष रख रहे थे। कल चुनाव आयोग द्वारा पार्टी पर शरद गुट के दावे पर संज्ञान नहीं लेने और राज्यसभा का नोटिस मिलने के बाद अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि इन पहलुओं को उनके वकील देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे देश की साझी विरासत पर आधारित संविधान की लड़ाई बचाने की बड़ी लड़ाई के लिए निकल पड़े हैं। बकौल शरद राज्यसभा की सदस्यता बचाना छोटी बात है, उनकी लड़ाई साझी विरासत बचाने की है। सिद्धांत के लिए वे पहले भी संसद की सदस्यता से दो बार इस्तीफा दे चुके हैं।
भविष्य की रणनीति के बारे में शरद ने कहा कि 17 सितंबर को पार्टी कार्यकारिणी और 8 अक्टूबर को राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद जेडीयू बड़े रूप में सामने आएगी। हालांकि कैसे आएगी, इस पर फिलहाल वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं। आगे नीतीश पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री मित्र ने खुद राजद प्रमुख लालू प्रसाद से जब महागठबंधन बनाने की पहल की थी, तब भी वह भ्रष्टाचार के आरोपों से बाहर नहीं थे। जबकि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद अचानक शुचिता के नाम पर गठजोड़ तोड़ दिया। यह बिहार के 11 करोड़ मतदाताओं के साथ धोखा है। हमने सिद्धांत के आधार पर ही इसका विरोध किया।
समाजवाद के इस पुराने नेता ने आगे की लड़ाई साझी विरासत के मंच से लड़ने की बात कही। वे लड़ेंगे भी, क्योंकि वे शुरू से धूल झाड़कर फिर से खड़े होने वालों में रहे हैं। लेकिन क्या तमाम आरोपों और मुकदमों से घिरे लालू और उनके परिवार की ‘बैसाखी’ से उनके ‘सिद्धांत’ को कोई गुरेज नहीं है? क्या वे प्रकारान्तर से यह कहना चाहते हैं कि लालू पुत्रों का ‘मॉल’ और मीसा का ‘फॉर्म हाउस’ गरीबों को ‘सामाजिक न्याय’ दिलाने के लिए है? या फिर यह मान लिया जाए कि भारतीय राजनीति में अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप