Supreme Court

पिता ने लगाया, पुत्र ने धोया सर्वोच्च अदालत का दाग

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ ने देश की सर्वोच्च अदालत के 67 साल के गौरवशाली इतिहास पर लगे एक दाग को धो दिया है। इस पीठ ने 1976 में आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लिए गए उस विवादास्पद फैसले को पलट दिया है जिसमें तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा जीवन के अधिकार को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा गया था। इतिहास का चक्र देखिए, सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ का फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लिखा, जिनके पिता वाईएस चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे जिससे ये ऐतिहासिक भूल हुई थी। कौन जानता था कि 41 साल पहले पिता के द्वारा लिए गए उस फैसले को स्वयं उनका पुत्र ही पलटेगा, जिसमें इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आपातकाल के दौरान राइट टू लाइफ के अधिकार को निरस्त करने के फैसले का समर्थन किया गया था।

गौरतलब है कि 1976 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए फैसले को जस्टिस एचएस बेग ने लिखा था, जिससे तत्कालीन चीफ जस्टिस एएन रॉय, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएन भगवती सहमत थे। जबकि जस्टिस एचआर खन्ना इस फैसले से पूरी तरह असहमत थे। उनका मानना था कि जीवन का अधिकार छीना नहीं जा सकता। 41 साल पहले की गई उस गलती को सुधारते हुए, जिसका हिस्सा उनके पिता भी थे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने साफ कहा कि चार जजों का बहुमत वाला फैसला खामियों भरा था, जबकि जस्टिस खन्ना बिलकुल सही थे। एडीएम जबलपुर जजमेंट के मामले पर बोलते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब देशों का इतिहास लिखा जाता है और उसकी समीक्षा होती है तो न्यायिक फैसले ही स्वाधीनता के ध्वजवाहक होते हैं।’

चलते-चलते बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की जिस नौ सदस्यीय पीठ ने ये ऐतिहासकि फैसला सुनाने की हिम्मत दिखाई उसमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस जे चेल्मेश्वर, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे।

सम्बंधित खबरें