यह संसार रिश्तों से बना है और हर रिश्ते की अपनी अहमियत होती है, लेकिन भाई-बहन का रिश्ता अपने आप में अद्भुत है। यही एक रिश्ता है, जिसकी कोई एक परिभाषा गढ़ पाना मुश्किल है। सोच कर देखिए, अगर आपकी बहन आपसे बड़ी है तो उसमें मां की झलक पाएंगे आप, छोटी है तो बेटी लगेगी वह। दोस्त तो वो हर हाल में है ही। आप जो सुख-दुख कई बार माता-पिता से नहीं बांट पाते वो अपनी बहन से बांट लेते हैं। एक बहन ही है जो आपकी कमियों के लिए आपको डांटती नहीं और अपना ऐसा कोई सुख नहीं जो आपसे बांटती नहीं। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के इसी अटूट प्यार की निशानी है, जिसे सदियों से मनाया जाता रहा है। भाई-बहन के विश्वास को बनाए रखने वाला यह त्योहार श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। लेकिन इसकी शुरुआत कब और क्यों हुई, इसके पीछे कई दिलचस्प कहानियां हैं। चलिए जानने की कोशिश करते हैं।
आपको जानकर हैरत होगी कि भाई-बहन के इस त्योहार की शुरुआत पति-पत्नी ने की थी। पुराणों के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता दानवों से हारने लगे। देवराज इंद्र की पत्नी शुचि ने देवताओं की हो रही हार से घबरा कर उनकी विजय के लिए तप करना शुरू कर दिया। तप से उन्हें एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन अपने पति इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस रक्षासूत्र से देवताओं की शक्ति बढ़ गई और उन्होंने दानवों पर जीत प्राप्त की। उसी दिन से यह परंपरा शुरू हुई कि आप जिसकी भी रक्षा व उन्नति की इच्छा रखते हैं, उसे रक्षासूत्र यानि राखी बांध सकते हैं, चाहे वह किसी भी रिश्ते में क्यों न हो।
वैसे हमारे इतिहास, खासकर पौराणिक इतिहास में ऐसी कई कहानियां दर्ज हैं जो रक्षाबंधन या राखी के महत्व को दर्शाती हैं। इनमें एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी है। इस कहानी के अनुसार श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस लौटा तब उसे पुन: धारण करने के क्रम में कृष्ण की उंगली थोड़ी कट गई। उंगली से रक्त बहता देख पांडवों की पत्नी द्रौपदी से रहा नहीं गया और उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की उंगली में बांध दिया। इस पर भावुक होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि वे आजीवन उनकी साड़ी की लाज रखेंगे। आगे चलकर दु:शासन ने जब द्रौपदी का चीरहरण करना चाहा तो उन्होंने पूरी तत्परता से अपना कहा पूरा किया।
रक्षाबंधन से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी का ताल्लुक हमारे मध्यकालीन इतिहास से है। यह कहानी रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं से संबंधित है और उस दौर को दर्शाती है जब राजपूत शासकों और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं। राजा की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया। अपने राज्य व प्रजा की रक्षा की खातिर चिन्तित रानी ने हुमायूं से मदद मांगी। उन्होंने हुमायूं को एक राखी भेजी और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। हुमायूं ने उस राखी की मर्यादा रखी और रानी को बहन का दर्जा देते हुए उनके राज्य को सुरक्षित कर अपना दायित्व पूरा किया।
रक्षाबंधन से जुड़ी बाकी कहानियां फिर कभी। फिलहाल हमें इजाजत दें और हमारी मंगलकामनाएं स्वीकार करें। शुभ रक्षाबंधन।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप