राष्ट्रपति पद के लिए मीरा कुमार के विपक्ष की साझा उम्मीदवार बनते ही जहां एकतरफा दिख रहा चुनाव दिलचस्प हो गया है, वहीं बिहार की राजनीति पर भी ‘अनिश्चितता’ और ‘अविश्वास’ के बादल मंडराने लगे हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने नीतीश द्वारा कोविंद को समर्थन दिए जाने को ‘ऐतिहासिक भूल’ करार दिया और मीरा की उम्मीदवारी की घोषणा के तत्काल बाद नीतीश से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की। लालू की इस अपील पर अपनी स्थिति साफ करने में जेडीयू ने वक्त नहीं लगाया और कहा कि राजनीतिक फैसले मिनट और सेकेंड में नहीं बदले जाते हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने स्पष्ट किया कि रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का फैसला कई बातों पर विचार करने के बाद लिया गया है। हमारी पार्टी की सर्वोच्च समिति ने यह तय किया है, इसलिए इसे बदलने का, इस पर फिर से विचार करने का कोई सवाल ही नहीं है।
बहरहाल, विपक्ष के उम्मीदवार के चयन के लिए दिल्ली में हुई 17 विपक्षी दलों की बैठक में मीरा कुमार का नाम तय किए जाने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में लालू ने कहा था कि “मैं नीतीश कुमार से अपील करता हूं और शुक्रवार को पटना जाकर भी अपील करुंगा कि वह ऐतिहासिक भूल न करें। उनकी पार्टी से गलत निर्णय हो गया, उसे बदलें।” उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी नीतीश कुमार से यह अपील की है। यह पूछे जाने पर कि क्या नीतीश के एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने से बिहार सरकार पर खतरा पैदा हो गया है और क्या उन्हें धोखा दिया गया है, लालू ने कहा कि “धोखा दिया या नहीं यह नीतीश जानें। सरकार चलती रहेगी। उस पर कोई खतरा नहीं है।”
बात जहां तक महागठबंधन सरकार की है, तो उसमें बने रहना तीनों घटक दलों की जरूरत है। इन दिनों एक साथ कई मुश्किलों से घिरे लालू के लिए तो शायद सबसे अधिक। हां, इतना जरूर है कि कांग्रेस और लालू नीतीश की ओर से इस तरह के निर्णय के लिए बिल्कुल ‘तैयार’ नहीं थे। हालांकि जेडीयू का कहना है कि कोविंद का नाम आना नीतीश के लिए ‘धर्मसंकट’ की तरह था और विपक्ष को उनके इस निर्णय को इसी परिप्रेक्ष्य में लेना चाहिए। उनके इस निर्णय से संघमुक्त भारत की उनकी लड़ाई पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
कुल मिलाकर राजनीति शह और मात का खेल है और नीतीश ने अपनी चाल चल दी है। अब अपने निर्णय को वापस लेना उनके लिए ‘घर का न घाट का’ होने जैसा होगा। इसलिए तय है कि वे ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन इतना जरूर है कि मीरा कुमार के सामने होने से वे कहीं-न-कहीं थोड़े ‘असहज’ जरूर होंगे। कारण यह कि मीरा कुमार कोविंद की तरह दलित होने के साथ-साथ महिला भी हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वो बिहार से हैं। उधर मतों के हिसाब से कोविंद की जीत में मोदी-शाह को अब शायद संदेह न हो, लेकिन मीरा कुमार हर लिहाज से इतनी ‘सक्षम’ उम्मीदवार हैं कि भारतीय राजनीति की ये कद्दावर जोड़ी भी ‘जश्न’ परिणाम आने के बाद ही मना पाएगी।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप