देश के सर्वोच्च पद के लिए एनडीए का उम्मीदवार बनाए जाने के ठीक बाद बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूर कर लिया है। कोविंद की जगह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी बिहार के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभालेंगे। इस बीच कोविंद ने अपने नाम की घोषणा होते ही दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व एनडीए के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की और अपना आभार जताया। यही नहीं, कोविंद बिहार के लोगों को भी धन्यवाद देना नहीं भूले।
उधर राष्ट्रपति पद के लिए कोविंद के उम्मीदवार बनते ही विपक्ष के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए। मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक का जवाब फिलहाल किसी दल को नहीं सूझ रहा। कांग्रेस, शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस ने अपनी ‘नाखुशी’ जरूर जाहिर की, लेकिन कोविंद के नाम का सीधा विरोध करना उनके लिए भी कठिन है। सच यह है कि शिवसेना, जिसने इस फैसले को ‘वोटबैंक’ की राजनीति करार दिया, वो भी उस ‘महादलित’ समुदाय का विरोधी कहलाना नहीं चाहेगी, जिससे कोविंद ताल्लुक रखते हैं।
वैसे जहां तक वोटबैंक की बात है, तो कोविंद से जिस पार्टी का वोटबैंक सबसे अधिक प्रभावित हो सकता है, वो है बहुजन समाज पार्टी। मायावती की तो पूरी राजनीति ही इस वोटबैंक पर टिकी है। अब बदले हालात में वो भाजपा को चाहे लाख कोस लें, लेकिन कोविंद का विरोध करने की भूल वो चाह कर भी नहीं कर सकतीं। उनका ऐसा करना अपना वोटबैंक दांव पर लगाने जैसा होगा।
इधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव सहित कई नेताओं ने भाजपा के इस फैसले का स्वागत किया। नीतीश कुमार ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ये मेरे लिए गर्व की बात है कि बिहार के राज्यपाल राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। हालांकि, कोविंद को समर्थन देने की बाबत उन्होंने जरूर कहा कि इसका फैसला वो पार्टी की मीटिंग के बाद करेंगे, लेकिन ये तय माना जा रहा है कि नोटबंदी की तरह इस मामले में भी वे विपक्ष से अपनी राह अलग करेंगे।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि नीतीश कोविंद को समर्थन देकर एक तीर से कई निशाने साधना चाहेंगे। सबसे पहले तो यह कि वे ऐसा कर कोविंद से अब तक अच्छे रहे रिश्ते को और ‘प्रगाढ़’ करना चाहेंगे। दूसरा, महागठबंधन से अलग भी उनके पास एक ‘विकल्प’ रहेगा और तीसरा, महादलितों के बीच इससे ‘पॉजिटिव’ मैसेज जाएगा। कुल मिलाकर ये कि राजनीति का निराला खेल देखिए, अभी हाल-हाल तक नीतीश राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी एकता की पहल कर रहे थे, और अब संभवत: विपक्षी दलों में से कोविंद को समर्थन देने की पहल भी वही करें।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप