5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन कई जगहों पर सरकारी आयोजन होंगे, कुछ पौधे लगाकर रस्म अदायगी होगी, भाषण दिए जाएंगे और हो जाएगी कर्तव्य की इतिश्री। बाकी दिनों तो बस पत्र-पत्रिकाओं में लेख ही लिखे जाएंगे। जहां तक व्यक्तिगत प्रयत्नों की बात है तो अपने घर-परिवार में या आसपास आपको कुछ ऐसे लोग जरूर दिखते होंगे (और हो सकता है आप स्वयं भी उन्हीं व्यक्तियों में शामिल हों) जिन्हें पेड़ों से प्रेम हों और जो नियमित तौर पर पेड़ लगाते हों। पेड़ों के साथ थोड़ा समय भी बिताते हों। पर्यावरण के प्रति जागरुक ऐसे किसी व्यक्ति से आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं, यही न कि अपने जीवन में उन्होंने सौ, दो सौ या कुछ हजार पेड़ लगा दिए होंगे। लेकिन अगर आपको कहा जाए कि आपके देश में कोई ऐसा भी है, जिसने अपने 71 साल के जीवन में पूरे एक करोड़ पेड़ लगाए हैं और यह क्रम अब भी जारी है, तो क्या प्रतिक्रिया होगी आपकी? आप शायद इस बात पर यकीन भी न करें, पर ये है सच, सौ फीसदी सच।
जी हां, तेलंगाना के खमाम जिले के रेड्डीपल्ली में रहने वाले 71 वर्षीय दरीपल्ली रमैया वो शख्स हैं जिन्होंने कुछ सौ या हजार नहीं, एक करोड़ पेड़ लगाए हैं। पहले इन्हें लोग पागल कहते थे जैसे बिहार के दशरथ मांझी को कहते थे। पर आज दशरथ मांझी ‘माउंटेनमैन’ कहलाते हैं और रमैया ‘ट्रीमैन’ के नाम से सम्मान पाते हैं। लोगों को इनके काम की अहमियत तब पता चली जब आज ग्लोबल वार्मिंग पर देश-दुनिया में मंथन हो रहा है। इनके अद्भुत कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा है, तो एकेडमी ऑफ यूनिवर्सल ग्लोबल पीस ने डॉक्टरेट की उपाधि दी है।
रमैया को पेड़-पौधों के प्रति ये लगाव अचानक नहीं हुआ। पर्यावरण प्रदूषण के चलते जब उनका मन विचलित होने लगा तब उन्होंने अपने इस अनोखे अभियान की शुरुआत की। वे जेब में बीज और साईकिल पर पौधे रखकर जिले भर में घूमते और जहां भी खाली जमीन दिखती वहां पौधे लगा देते। आपको आश्चर्य होगा कि इन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन इसलिए बेच दी थी कि वे उन पैसों से बीज और पौधे खरीद सकें। पेड़ों के प्रति उनका प्रेम केवल उन्हें लगाने तक सीमित नहीं, बल्कि उनका बच्चों की तरह ख्याल भी रखते हैं। अगर कोई पेड़ सूख जाए तो इन्हें उतना ही कष्ट होता है जितने एक पिता को अपने बच्चे को परेशान देखकर होता है।
रमैया केवल पेड़-पौधे लगाने का जुनून ही नहीं रखते बल्कि वे वृक्षों का चलता-फिरता विश्वकोष भी हैं। वे पौधों की विभिन्न प्रजातियों, उनके उपयोग और लाभ आदि के विषय में विस्तृत जानकारी रखते हैं। उनके पास राज्य में पाए जाने वाले 600 से ज्यादा वृक्षों के बीजों का अनूठा संग्रह भी है।
हमेशा टीन की टोपी पहने, लोगों को हरियाली और पर्यावरण के प्रति जागरुक करते प्रकृति के इस कर्मठ पुत्र को हमारा नमन। और हां, क्या हम अपने भीतर रमैया का थोड़ा अंश भी नहीं पाल सकते?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप