दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का तमगा हमने खो दिया। वित्तीय वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में भारत की जीडीपी दर गिरकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई, जबकि इस दौरान चीन की आर्थिक विकास दर 6.9 प्रतिशत रही। चारो तिमाही को मिलाकर यानि पूरे वित्तीय वर्ष की बात करें तो लगभग 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। पिछले साल जीडीपी दर 8 प्रतिशत थी, जबकि इस साल यह 7.1 प्रतिशत रही। जानकारों के मुताबिक अर्थव्यवस्था में इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण पिछले साल के अंत में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी रही है।
हालांकि केन्द्रीय सांख्यिकी विभाग विकास दर में आई कमी के लिए केवल नोटबंदी को जिम्मेदार नहीं मानता। उसका कहना है कि गिरावट की कई वजहें हैं जिनमें से एक नोटबंदी भी है। वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कह रहे हैं कि विकास की रफ्तार में आई गिरावट के लिए नोटबंदी नहीं, पूरे विश्व में जारी आर्थिक मंदी और यूपीए सरकार जिम्मेदार है। रही बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तो वे स्पेन जाकर भारत को निवेश के लिए पहले से अधिक मजबूत बता रहे हैं। जाहिर है, कोई सच मानने को तैयार नहीं। पर नोटबंदी का स्याह सच यह है कि अगर जीडीपी की गणना में छोटे व्यवसायों और असंगठित क्षेत्रों के आंकड़े शामिल कर दिए जाएं, जिन पर नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ी और जिन्हें हमारे देश की जीडीपी की गणना में शामिल नहीं किया जाता, तो स्थिति बद से बदतर होती दिखेगी।
देश को यह जानना चाहिए कि नोटबंदी के बाद एक कृषि को छोड़ सारे क्षेत्रों में – चाहे वो विनिर्माण हो, मैन्यूफैक्चरिंग हो या सेवा क्षेत्र – भारी गिरावट आई। कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली जैसे बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर एकदम से चरमरा गई।
नोटबंदी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इससे जीडीपी में दो प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के मुताबिक नोटबंदी एक भूल थी। इसके बुरे परिणामों की आशंका जताते हुए उन्होंने कहा था कि इतने बड़े निर्णय के पीछे उन्हें कोई कारण नहीं दिखता। वर्ल्ड बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री एवं वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने तो इसे पिछले 70 वर्षों में आर्थिक नीति की सबसे बड़ी भूल करार दिया था। क्या ये तमाम आशंकाएं आज सच होती नहीं नहीं दिख रहीं?
चलते-चलते एक बात और, केन्द्र सरकार ने नोटबंदी के बाद जितना कालाधन मिलने की बात कही, क्या उससे कई गुणा अधिक नुकसान जीडीपी में गिरावट से देश को नहीं हुआ? इसमें नए नोटों को छापने का खर्च मिला दें तो सोचिए नुकसान का आंकड़ा कहां तक जाएगा! और हां, नोटबंदी के कारण जो जानें गईं क्या वो कभी लौट के आएंगी? मोदीजी, आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि एक बार फिर टीवी पर आईए और अपने ‘भाईयों एवं बहनों’ को नोटबंदी का स्याह सच भी बताईए!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप