चलिए, हनुमान जयंती के पावन अवसर पर एक अद्भुत कथा से अवगत कराएं आपको। ये कथा न केवल भगवान राम और उनके सर्वप्रिय भक्त हनुमान से जुड़ी है, बल्कि मधेपुरा के समीप स्थित प्रसिद्ध सिंहेश्वर स्थान से भी जुड़ी है।
पूरी दुनिया राम और हनुमान के बीच भगवान और भक्त का रिश्ता जानती है, है भी। सच तो यह है कि भक्ति में हनुमान की कोई सानी ही नहीं। यह भी सच है कि मर्यादापुरुषोत्तम राम अपने इस भक्त को भाई से कम नहीं मानते थे। उन्होंने अपने मुख से कहा है – तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई। अर्थात् हे हनुमान तुम मुझे मेरे भाई भरत जैसे ही प्रिय हो। चाहे वाल्मीकि रामायण हो, चाहे तुलसीदासरचित रामचरितमानस या रामायण के अन्य सैकड़ों संस्करण, राम और हनुमान के बीच का यह स्नेह सर्वत्र वर्णनातीत है। न तो उसे शब्दों में बांधा जा सकता है और न ही वो किसी संबंधविशेष के दायरे में समा सकता है। फिर भी ये जानना खासा दिलचस्प होगा कि राम और हनुमान केवल भावना से नहीं, रिश्ते से भी भाई थे। भले ही इनकी मुलाकात सुग्रीव के सौजन्य से पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हुई हो, पर सच यह है कि विधाता ने इनका रिश्ता जन्म के पहले ही जोड़ दिया था। चलिए जानते हैं कैसे।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, राजा दशरथ ने पुत्रप्राप्ति की कामना से ऋष्य़ श्रृंग, जिनका आश्रम मधेपुरा के समीप स्थित सिंहेश्वर में था, को बुलाकर पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के पूर्ण होने पर अग्निदेव एक पात्र में खीर लेकर प्रकट हुए, जो राजा दशरथ की तीनों रानियों को खाना था। राजा दशरथ ने यह खीर अभी तीनों रानियों को दिया ही था कि एक पक्षी अचानक आया और खीर का पात्र लेकर उड़ चला। तीनों रानियों के खा लेने के बाद भी खीर के कुछ दाने उस पात्र में रह गए थे। संयोगवश पक्षी के मुंह से खीर का वह पात्र छूट गया और हनुमानजी की माता अंजनी की गोद में जा गिरा जो उस समय स्वयं पुत्र की कामना से तपस्या कर रही थीं। माता अंजनी ने उस खीर को भगवान शिव का प्रसाद समझकर खा लिया और उस खीर के प्रताप से दशरथ की तीनों रानियों की तरह वो भी गर्भवती हो गईं।
समय आने पर दशरथ के घर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन का जन्म हुआ, तो दूसरी ओर माता अंजनी ने हनुमान को जन्म दिया। इस तरह भगवान राम और उनके अप्रतिम भक्त हनुमान के बीच एक अनजाना रिश्ता जुड़ा था, जो भाई-भाई का था। इस बात की सत्यता इससे भी प्रमाणित होती है कि राम और हनुमान के जन्मदिवस में मात्र छह दिनों का अंतर है।
सौजन्य: मंटो बाबू