आप बिहार के हैं और राजधानी पटना न आए हों सामान्यतया ऐसा नहीं हो सकता और पटना आने पर स्टेशन स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर आपने न देखा हो ये भी मुमकिन नहीं। आपने जरूर सुना या पढ़ा होगा कि इस मंदिर की गिनती उत्तर भारत के गिने-चुने मंदिरों में होती है। लेकिन सच यह है कि देश भर के चुनिंदा मंदिरों की सूची बनाई जाए जहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हो और चढ़ावों का अंबार लगता हो, तब भी पटना का हनुमान जी का ये मंदिर तिरुपति के बालाजी मंदिर, शिर्डी के सांई बाबा मंदिर और जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर आदि के साथ शीर्ष के कुछ मंदिरों में शुमार किया जाएगा। रामनवमी के दिन तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं की लाईन कई किलोमीटर तक लगी होती है। एक अनुमान के मुताबिक इस दिन राम के इस अप्रतिम भक्त के दर्शन के लिए तीन से चार लाख श्रद्धालु जुटते हैं।
तो चलिए रामनवमी के पावन अवसर पर इस मंदिर की विशेषताओं से रूबरू होते हैं। सबसे पहली और अहं बात यह कि यहां आकर शीश नवाने वाले किसी भक्त ने आज तक ये नहीं कहा कि उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई। इस मंदिर की स्थापना 1730 ई. में स्वामी बालानंद ने की थी। तब यह मंदिर बैलगाड़ी से चंदे में एक-एक ईंट एकत्र कर बना था। साल 1900 तक यह मंदिर रामानंद संप्रदाय के अधीन रहा। उसके बाद 1948 तक इस पर गोसांई संन्यासियों का कब्जा रहा। साल 1948 में पटना हाईकोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित कर दिया। उसके बाद आचार्य किशोर कुणाल के प्रयास से साल 1983 से 1985 के बीच वर्तमान मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और आज इस मंदिर का भव्य स्वरूप सबके सामने है।
इस मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है और मंदिर में हनुमानजी समेत सारे देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं, परन्तु गर्भगृह में बजरंग बली की मूर्ति है और कमाल की बात यह कि एक नहीं एक साथ दो मूर्तियां हैं – हनुमानजी की युग्म मूर्तियां। आप याद करें, जब भी आप इस मंदिर गए होंगे, फूलवाले ने आपको दो माला दी होगी ताकि हनुमानजी की दोनों मूर्तियों पर माला चढ़ सके। कभी आपने सोचा कि यहां एक साथ दो मूर्तियां क्यों हैं? देश भर में हनुमानजी के हजारों मंदिर हैं लेकिन कहीं आपने ऐसा नहीं देखा होगा। चलिए, आज हम बताते हैं। दरअसल यहां हनुमानजी की दो मूर्तियां दो अलग आशय से रखी गई हैं। कहा जाता है कि दो मूर्तियों में एक मूर्ति अच्छे लोगों के कार्य पूर्ण करती है और दूसरी बुरे लोगों की बुराई दूर करती है। एक तरह से भक्तों के शीघ्र कल्याण के लिए स्वयं को ही दो हिस्सों में बांट लिया हनुमानजी ने। है न कमाल की बात!
अब बात हनुमानजी के प्रिय भोग लड्डू की। आपको आश्चर्य होगा कि 1930 तक यहां लड्डू की एक भी दुकान न थी और आज आलम यह है कि प्रतिदिन औसतन 25 हजार किलो लड्डू की बिक्री केवल एक दुकान से होती है जो मंदिर परिसर में मंदिर प्रशासन द्वारा ही चलाई जाती है। यहां तिरुपति के कारीगर खास तौर पर नैवेद्यम लड्डू तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त अगल-बगल दर्जनों अन्य दुकानें भी हैं जिनमें बेसन और मोतीचूर के कई किस्म के लड्डू आप खरीद सकते हैं।
सच ही कहा गया है – हरि अनंत हरि कथा अनंता। अभी इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी बाते हैं जो आपको चकित करेंगी। फिलहाल चलते-चलते बस एक बात और। इस मंदिर के दूसरे तल पर आप कांच का एक बड़ा बरतन देखेंगे, जिसमें रामसेतु का पत्थर रखा हुआ है। आप उस समय दांतो तले ऊंगली दबा लेंगे जब देखेंगे कि 15 किलो वजन वाला यह पत्थर कितने आराम से पानी में तैरता रहता है।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप