यूपी में भगवा रंग छाने और उसके बाद वहां की बागडोर योगी आदित्यनाथ के हाथों में जाने के बाद भाजपा के बयानवीरों ने ‘हिन्दुत्व’ की राजनीति को नए सिरे से भुनाना शुरू कर दिया है। वे अब एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे हैं जो ऊपर से दिखते तो ‘उदात्त’ हैं, पर इनके भीतर एक नए किस्म के ‘तनाव’ का बीज छिपा है। अब गिरिराज सिंह का ताजा बयान ही देख लीजिए। उन्होंने कहा है कि ‘अयोध्या में राम मंदिर जरूर बनेगा’ और नई बात ये कि इसे हिन्दू और मुसलमान ‘मिलकर बनाएंगे’। आप पूछेंगे कि ये चमत्कार क्योंकर होगा तो उसका भी जवाब तैयार है जनाब, ऐसा इसलिए संभव होगा कि बकौल गिरिराज ‘हिन्दू और मुसलमानों का डीएनए एक है’।
जी हां, भाजपा के केन्द्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा कि अयोध्या में भव्य राममंदिर बनेगा और दो सौ प्रतिशत बनेगा। हम और मुसलमान दोनों मिलकर राम मंदिर बनाएंगे क्योंकि मुसलमान भी हमारे वंशज हैं। दोनों के डीएनए एक हैं। हिन्दू और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं। गिरिराज का कहना है कि धर्म अलग-अलग हैं, इबादत अलग-अलग हैं, लेकिन पूर्वज एक हैं। राम मंदिर में मुसलमानों की भी आस्था है और अपने पूर्वजों की याद में हम मिलकर मंदिर बनाएंगे।
जब गिरिराज ऐसा बोल रहे हों तो भला साक्षी महाराज कहां चुप रहने वाले थे? उन्होंने गिरिराज का साथ देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर राम मंदिर बनाए। साक्षी ने कहा – हम सब भाई-भाई हैं और हिन्दू-मुसलमान मिलकर राम मंदिर बनाएंगे।
बहरहाल, यह सब सुनते-पढ़ते-लिखते मन में कई बातें उथल-पुथल मचाती हैं। सबसे पहले तो यह कि सारे मुसलमानों का एकदम से डीएनए टेस्ट कैसे हो गया? अगर ये बात ‘जुमले’ के तौर पर नहीं सांस्कृतिक एकता की सूख रही जड़ों को जिन्दा करने के लिए कही गई है तो बाबरी मस्जिद टूटी ही क्यों थी? छोड़िए बाबरी मस्जिद की ‘पुरानी’ बात। ताजा उदाहरण अभी खत्म हुए चुनाव का। इस बात का क्या जवाब है गिरिराज और साक्षी महाराज के पास कि यूपी की 403 सीटों में से एक पर भी समान ‘डीएनए’ वाले ‘भाई’ की याद क्यों नहीं आई? हिन्दुत्व के ‘हीरो’ योगी और ‘सुपर हीरो’ मोदी जब ‘श्मसान-कब्रिस्तान’ के मुद्दे पर घमासान कर रहे थे, तब ‘डीएनए’ कहां था? क्या मरने के बाद ‘डीएनए’ अलग हो जाता है?
गिरिराज और साक्षी महाराज के पहले के एक नहीं दर्जनों बयान हैं जो उनके अब के बयान का मुंह चिढ़ाते दिख रहे हैं। खैर, अगर ये बात इनलोगों ने उकसाने या समुदायविशेष पर दबाव बनाने और अपना ‘वोटबैंक’ चमकाने के लिए नहीं कही होती तो जरूर इनका हृदय से स्वागत किया जाना चाहिए था! चलते-चलते एक बात और। क्या मंदिर-मस्जिद का झगड़ा छोड़ विवादित स्थल पर कोई अस्पताल या स्कूल खोल देना बेहतर विकल्प नहीं है, जो ‘समान’ नहीं ‘सारे’ डीएनए वालों के लिए होता?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप