‘मेरे बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी सुशील मोदी से डरने वाले हैं क्या?’ ये कहना है बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू के दोनों ‘तेज’ राबड़ी देवी की मां का। दरअसल राबड़ी देवी बुधवार को विधान परिषद के मुख्य द्वार पर मीडिया से मुखातिब थीं और बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी की उस टिप्पणी पर बोल रही थीं जो उन्होंने मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव की सदन में अनुपस्थिति पर की थी। सुशील मोदी ने कहा था कि तेजप्रताप यादव को बांसुरी बजाने, घुड़सवारी करने और जलेबी छानने की फुर्सत है, लेकिन सदन में आने की नहीं।
गौरतलब है कि मोदी के इस बयान पर बिहार के राजनीति में तहलका मच गया है। उन्होंने लालू-राबड़ी के बड़े बेटे के कामकाज को लेकर सवाल उठाया था और विधानसभा में गैरहाजिर रहने के कारण उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।
बहरहाल, मां ने तो जो कहना था कहा, जवाब देने में बेटा भी पीछे न रहा। तेजप्रताप ने सोशल मीडिया पर सुशील मोदी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सुशील मोदी जी लालू प्रसाद यादव के पीए रह चुके हैं और मैंने राजनीति लालू प्रसाद यादव से सीखी है। लिहाजा मुझे सुशील मोदी नसीहत न दें। पाठकों को बता दें कि छात्र राजनीति के दौरान सुशील मोदी लालू के साथ व पदेन उनके अधीन काम कर चुके हैं। लालू जिस समय अध्यक्ष (President) थे उस समय मोदी सचिव (Secretary) थे, जिसका तर्जुमा तेजप्रताप पीए (Private Assistant) कर रहे हैं।
खैर, तेजप्रताप यहीं नहीं रुके। आगे उन्होंने कहा कि जब सुशील मोदी जी जैसे लोग मुझे ट्रेनिंग की बात करते हैं तो उनकी योग्यता पर मुझे दया आती है…। इससे पहले भी तेजस्वी को मिले विवाह-प्रस्तावों के बाद मोदी द्वारा तेजप्रताप के विवाह के बारे में सवाल करने पर तेजप्रताप ने उन्हें न केवल अपने बेटे की चिन्ता करने की नसीहत दी थी, बल्कि यहां तक कह डाला था कि क्या उनका बेटा नपुंसक है?
बहरहाल, इस प्रकरण पर टिप्पणी की भी जाए तो क्या। हमलोग तो गुजर ही रहे हैं ढहते संस्कारों और बिकते विचारों के दौर में। फिर भी यह कहना पड़ेगा कि पहले तो सुशील मोदी जैसे गंभीर नेता को कोई अगंभीर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। वे स्वास्थ्य मंत्री की अनुपस्थिति की बात जरूर कहते लेकिन जलेबी छानने तक नहीं पहुंचते। और दूसरी और बेहद जरूरी बात यह कि राज्य के मुख्यमंत्री समेत कई महत्पूवर्ण पदों पर रह चुके लालू और राबड़ी को अपने बेटे को ऐसे मामलों में शह देने की बजाय विनम्रता और मर्यादा की सीख देनी चाहिए। यह न केवल उनके पुत्र के हित में होगा बल्कि उस पूरी पीढ़ी के हित में होगा जो अभी राजनीति में उतर रही है और अब भी इसमें संस्कार और विचार ढूंढ़ने की आस लगा रही है। उसे तो ‘डरने’ और ‘विनम्र होने’ का फर्क पता हो।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप