Lord Shiva

महाशिवरात्रि के दिन हर शिवलिंग में मौजूद होते हैं शिव

आज हर शिवालय में शिवभक्तों की कतार लगी है। हर गांव, हर गली, हर नगर, हर डगर धूम है तो बस देवाधिदेव महादेव की। उत्तर प्रदेश में शिव की नगरी काशी हो या उत्तराखंड में उनकी जटा से निकली गंगा की धरती हरिद्वार, मध्यप्रदेश का उज्जैन हो या गुजरात का सोमनाथ, झारखंड का देवघर हो या बिहार का सिंहेश्वर या फिर पड़ोसी देश नेपाल का विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर… हर जगह आस्था की अजस्त्र लहरें कलकल-छलछल करती देखी जा सकती है। और ऐसा हो भी क्यों न! महाशिवरात्रि का महत्व ही कुछ ऐसा है। आज ही के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। कहते हैं कि फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानि फरवरी-मार्च के महीने में पड़ने वाले इस त्योहार के दिन भगवान शिव का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है।

शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव अपने रुद्र रूप में प्रकट हुए थे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। इसी समय जीवनरूपी चन्द्रमा का मिलन शिवरूपी सूर्य के साथ होता है। अत: महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के दिव्य ‘अवतरण’ की रात्रि है। देखा जाय तो यह त्योहार सम्पूर्ण सृष्टि को उनके निराकार से साकार रूप में आने की मंगल सूचना है। महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है।

कहने की जरूरत नहीं कि शिव इस सम्पूर्ण सृष्टि के आधार हैं। योग परम्परा में वे दुनिया के पहले गुरु माने जाते हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी। इस मार्ग पर चलने वाले उनकी पूजा ईश्वर के रूप में नहीं बल्कि उन्हें आदिगुरु मानकर करते हैं। इतनी विशाल हैं इस ‘कैलाशवासी’ की बांहें कि उनमें सुर ही नहीं असुर भी समा जाएं। उदार इतने कि बेलपत्र और भांग-धतूरा चढ़ाकर जो चाहे मांग लो। देखा जाय तो एकमात्र शिव हैं जो सच्चे अर्थों में आपकी श्रद्धा देखते हैं केवल। आज भी संसार के हर मंदिर में उनकी पूजा, उनके भोग और उनके श्रृंगार में केवल प्रकृति-प्रदत्त और घर में सहज उपलब्ध चीजें ही चढ़ती हैं। फल न हो न सही, साग-सब्जी ही चढ़ा दो, दूध-दही-मधु न सही, लोटा भर जल ही उड़ेल दो।

शिव यूं ही नहीं हैं देवों के देव। ‘महादेव’ होने के लिए गले में विषधर और कंठ में सारे जगत का विष धारण करने की सामर्थ्य होनी चाहिए। व्यक्तित्व आपका ऐसा हो कि ‘सत्यं-शिवं-सुन्दरं’ को परिभाषा मिल जाए, हर दिशा से ठुकराए हुए को जीने की आशा मिल जाए।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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