Nitish Kumar

मुख्यमंत्रीजी, शराब पीने पर ऐसी सजा तो चरित्रहीनता पर…?

अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं तो शराब को भूल जाइए – न केवल ड्यूटी पर बल्कि ड्यूटी के बाद भी और न केवल बिहार में बल्कि बिहार के बाहर भी। जी हाँ, अगर आप कभी भी और कहीं भी शराब या ड्रग्स के साथ देखे गए तो आप अपनी नौकरी से हाथ धो सकते हैं। ये नया फरमान बिहार सरकार का है, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हरी झंडी दे दी है।

गौरतलब है कि बुधवार को नीतीश कुमार ने बिहार सरकार के एंप्लायी कंडक्ट रूल्स, 1976 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सरकारी कर्मचारियों के लिए कई निषेधात्मक प्रावधान जोड़े जाने को स्वीकृति दे दी है। सरकार ने राज्य में पहले से लागू शराबबंदी को और मजबूती देने के लिए यह कदम उठाते हुए सरकारी कर्मचारियों व न्यायिक अधिकारियों के शराब पीने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है।

इस मौके पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए कैबिनेट सचिव बृजेश महरोत्रा ने बताया कि मूल नियमों के मुताबिक ड्यूटी पर कोई सरकारी कर्मचारी नशा नहीं कर सकता था, लेकिन संशोधन के बाद अब वह कहीं भी मादक पदार्थों का सेवन नहीं कर सकता। नियम का उल्लंघन करने वाले पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी और सजा के तौर पर नौकरी तक जा सकती है। बिहार के सरकारी कर्मचारियों को न सिर्फ अपने राज्य में बल्कि अन्य राज्यों में भी नियम तोड़ते हुए पाए जाने पर सजा भुगतनी पर सकती है।

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि शराबबंदी के मामले में बिहार सरकार और इसके मुखिया ने जैसी प्रतिबद्धता दिखाई है उसकी देश और दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है। लेकिन क्षमायाचना के साथ कहना चाहूंगा कि इस नए फरमान में ‘प्रतिबद्धता’ कम और ‘सनक’ ज्य़ादा दिख रही है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब दलविशेष से जुड़े कुछ लोग उत्तर प्रदेश और झारखंड में नशे में पाए गए थे। तो क्या उनके पद और अधिकार भी छीन लिए गए?

सच तो यह है कि केवल शराब से चरित्र और व्यक्तित्व का निर्धारण हरगिज नहीं हो सकता। डंडे के जोर पर तो और भी नहीं। आदतें न तो एक दिन में बनती हैं और न एक दिन में छूटती ही हैं। क्या सरकार और प्रशासन के लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि सामर्थ्यवान लोगों के लिए शराब अभी भी सुलभ है? हाँ, ये जरूर है कि उन्हें कीमत पहले से अधिक चुकानी पड़ती है।

शराबबंदी अच्छी चीज है। सरकार उस पर जरूर कायम रहे। नैतिकता की बात वो करे, लेकिन व्यावहारिकता के साथ। इस तरह नहीं कि सामने वाला ‘प्रतिक्रिया’ कर बैठे। वैसे इस ‘प्रतिक्रिया’ को कुछ लोग ‘विद्रोह’ की संज्ञा भी देते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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