गुजरात के मेहसाना में रहने वाले खिमजी प्रजापति को रोटरी क्लब ऑफ इंडिया ‘लिट्रेसी हीरो अवार्ड’ से सम्मानित करेगी। आप सोच रहे होंगे कि ये कौन-सी बड़ी ख़बर है जो ‘मधेपुरा अबतक’ वाले परोस रहे हैं! जरा ठहरिए, आप खुद कहेंगे कि ये कितनी बड़ी ख़बर है जब मैं बोलूंगा कि खिमजी प्रजापति एक भिखारी हैं। जी हाँ, भिखारी। धन से गरीब पर मन से इतने अमीर कि आप और हम झेंप जाएं। क्या आप यकीन करेंगे कि 68 साल के प्रजापति लड़कियों को शिक्षा देने के लिए प्रेरित करने हेतु सोने के कुंडल देते हैं। उनकी इस अनोखी समाजसेवा के लिए रोटरी क्लब उन्हें पुरस्कृत कर रहा है। उन्हें 1 लाख रुपये की इनामी राशि के साथ-साथ परोपकार के कार्यों के लिए प्रशंसापत्र भी दिया जाएगा।
बता दें कि रोटरी क्लब ने इस पुरस्कार के लिए खिमजी प्रजापति के अलावा तीन अन्य लोगों और एक संस्थान को भी चुना है। जिन चार लोगों को इस सम्मान के लिए चुना गया है, वे सभी जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अकेले प्रजापति हैं जिनके पास कोई संपत्ति नहीं है। उन्हें तो बस देकर खुशी मिलती है। वे कहते हैं कि मैं जब किसी जरूरतमंद को कुछ दे पाता हूं, तब ज्यादा खुश और संतुष्ट महसूस करता हूं।
फरवरी 2016 में प्रजापति का नाम तब सुर्खियों में आया था जब मेहसाना के मागपारा गांव स्थित आंगनबाड़ी स्कूल में पढ़ने वाली 10 लड़कियों को उन्होंने सोने के कुंडल दिए थे। इसके लिए उन्होंने इलाके में स्थित एक जैन मंदिर के बाहर भीख मांगकर पैसे जमा किए थे। समाज के लिए कुछ करने का उनका जुनून यहां रुक नहीं जाता। लड़कियों को स्कूल यूनिफॉर्म देने से लेकर उनका कन्यादान करने तक कई काम करते हैं वे, और बड़ी बात ये कि बिना किसी शोर, बिना किसी प्रचार के। उनकी एकमात्र इच्छा और अपने जीवन से एकमात्र उम्मीद यही है कि बच्चे पढ़ें, युवा पीढ़ी सशक्त बने और सब खुश रहें। कोई जरूरतमंद मिले तो खुले हाथों से वे मदद कर सकें।
खुद को मिल रहे पुरस्कार से उत्साहित खिमजी प्रजापति कहते हैं कि मैं ज़िन्दगी में कभी मेहसाना से बाहर नहीं गया। मैं एक साथ बहुत खुश भी हूं और घबराया हुआ भी। जिस ईश्वर ने मुझे औरों की मदद करने का हौसला दिया, वह मेरी मदद आगे भी करता रहेगा। गौरतलब है कि रोटरी क्लब ऑफ इंडिया का पुरस्कार ग्रहण करने के लिए उन्हें 3 मार्च को चेन्नई जाना है। हवाई जहाज से आने-जाने से लेकर होटल में उनके ठहरने व अन्य सुविधाओं का ध्यान क्लब की ओर से रखा जाएगा।
बहरहाल, खिमजी प्रजापति अपनी अद्भुत समाजसेवा के लिए अपने आसपास के इलाके में पहले से मशहूर थे। आज उनकी कीर्ति की खुशबू बाहर फैलने लगी है और हम-आप उनके बारे में पढ़ और लिख रहे हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन एक बात मन-मस्तिष्क को लगातार कुरेद रही है और वो ये कि क्या हम खिमजी प्रजापति नहीं बन सकते? क्या आपके पास जवाब है इस सवाल का?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप