भारतीय अध्यात्म के सिंहावलोकन से यह साफ लगने लगता है कि राम यदि मर्यादा पुरुषोत्तम है तो कृष्ण सोलहो कला से पूर्ण ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषुकदाचन’ का प्रतीक |
यह भी बता दें कि 7 फरवरी की पूरी रात मधेपुरा श्रीकृष्ण की भक्ति-वंदना में डूबा रहा | जीवन सदन का विशाल हाल भी छोटा पड़ गया | क्या बच्चा, क्या बड़ा ! सभी कृष्ण वंदना में लीन ! वस्तुतः कृष्ण की भक्ति में लीन होने से अंतर्मन में कर्मों की खुशबू फ़ैलने लगती है और भीतर प्रकाशमय होने लगता है | अंतर्मन का अंधेरा विलीन होने लगता है | कर्म का दीप जलने लगता है | परंतु, कर्मों के दीप को सदैव जलते रहने के लिए उसमें ज्ञान की बाती और संकल्प का तेल दोनों डालना पड़ता है |
राजस्थान के भजन गायक सज्जन दाधीच एवं गायिका अनीता राठौड़ के साथ सूरजगढ़ के गायक मनोज ठठेरा एवं गायिका राधारानी की टीम द्वारा श्रीकृष्ण के बहुआयामी स्वरूप को अत्यंत करीने से लयबद्ध होकर दर्शकों के समक्ष परोसा गया | यूं तो कृष्ण की 30 अनजानी लीलाएं हैं जिनमें उनकी बाल-लीला और रास-लीला भक्तों को घंटों बांधकर रखती हैं |
मौके पर कृष्ण-सुदामा की मित्रता का ऐसा अद्भुत प्रदर्शन इन कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया कि शायद ही कोई ऑंखें बची होंगी जो नम ना हुई हों | यह भी जानिये कि जिस निर्माणाधीन 4 मंजिले जीवन सदन की दूसरी मंजिल पर सभी दर्शकों के लिए भोजन की भी व्यवस्था की गई थी उनमें से अधिकाधिक कृष्ण भक्ति में डूबे दर्शक ऐसे पाये गये जो ऊपर जाकर भोजन तक करना भूल गये | सूर्योदय होने तक दर्शक डटे रहे |
यह भी बता दें कि प्रत्येक साल एक बार कृष्ण की संस्कृति और संस्कार से मधेपुरा को गीतमय एवं रसमय बनाने वाले खासकर मारवाड़ी समाज के युवाओं एवं गणमान्यों का मधेपुरा का समाज अभिनंदन करता है, बंदन करता है | भला क्यों नहीं, अधिकांश गणमान्य तो इस कार्यक्रम को सफल करने में सारा कुछ करते हुए भी अपनी उपस्थिति सार्वजनिक करना नहीं चाहते, फिर भी जिन्हें कार्यक्रम की सफलता की जवाबदेही दी जाती है उन्हें तो विवश होकर सामने आना ही पड़ता है……..| धन्यवाद के पात्र वे श्याम सखा के सदस्यगण हैं- राम भगत सर्राफ, मनीष कुमार सर्राफ, राजेश सर्राफ, अशोक संचेती, आनंद प्राणसुखका, पप्पू सुल्तानियां, संजय सर्राफ, संजय सुल्तानियां, श्रवन सुल्तानियां आदि |