Arun Jaitley

बिहार का कसूर बताएं, जेटलीजी!

2017-18 के केन्द्रीय बजट में आश्चर्यजनक ढंग से बिहार की अनदेखी हुई है। इस बार भी बिहार का हाथ खाली का खाली रह गया। क्या ये बिहार विधानसभा चुनाव में मनोनुकूल परिणाम न मिलने की सजा है? अगर नहीं, तो जेटलीजी बिहार का कसूर बताएं। वे बताएं कि इस बार के बजट में अगर झारखंड और गुजरात में एम्स दिया जा सकता है, तो फिर बिहार की उपेक्षा का क्या आधार है? क्या ये महज संयोग है कि इन दो राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और बिहार में नहीं?

कम-से-कम वित्तमंत्री अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वादे की लाज ही रख लेते, जिन्होंने अपनी चुनावी सभाओं में बिहार को विशेष पैकेज और विशेष दर्जा देने की बात कही थी। मगर, दूसरी बार भी बिहारवासियों के हिस्से में निराशा ही क्यों? क्या बिहार को महाराष्ट्र, गुजरात जैसे विकसित राज्य के समकक्ष लाने के लिए केन्द्रीय बजट में यहाँ के लिए अतिरिक्त राशि का प्रावधान जरूरी नहीं?

सड़क, पुल और परिवहन के मामले में भी बिहार की उपेक्षा हुई है। बजट में राज्य के लिए इस क्षेत्र में कोई नई योजना नहीं दिखी। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित सवा लाख करोड़ पैकेज में पहले से चल रही जिन योजानाओं की चर्चा थी, उनकी भी गति तेज करने का कोई प्रयास नहीं दिखा।

किसी से छिपा नहीं है कि बिहार को हर साल नेपाल से आने वाली नदियों से भारी तबाही झेलनी पड़ती है और साथ ही सूखे का प्रकोप भी झेलना पड़ता है। फिर भी इस बजट में नदियों को जोड़ने की परियोजना, गाद प्रबंधन नीति और फरक्का बराज से पैदा हुए संकट से उबरने के उपाय नहीं किए गए।

और तो और, इस बजट में बिहार को बीआरजीएफ (Backward Regions Grant Fund) मद की बकाया राशि केन्द्र से मिलने की उम्मीद थी, मगर वो भी नहीं मिली। क्या ये बिहार के साथ भेदभाव नही? आश्चर्य तो ये है कि प्रधानमंत्री तो प्रधानमंत्री, केन्द्र में बैठे बिहार के आधा दर्जन मंत्री भी इस मसले पर चुप हैं।

ये तो हुई बिहार की बात। वैसे भी इस बजट में आर्थिक सुधार के लिए कोई रणनीतिक तैयारी की झलक नहीं मिलती है, जबकि यह निजी निवेश में बढ़ोतरी की अनिवार्य शर्त है। सार्वजनिक निवेश में बढ़ोतरी के लिए भी खास नीति का जिक्र नहीं है। जो भी इन्सेंटिव दिया गया है, वह कुछ मायनों में हाउसिंग सेक्टर के लिए है। पर क्या देश का विकास सिर्फ इसी से हो जाएगा?

विकास के दो मुख्य आधार हैं – कृषि और उद्योग। लेकिन न तो कृषि को बढ़ावा देने की रणनीति पर कोई काम हुआ है, न ही उद्योग के नए क्षेत्रों के विकास पर बजट में कुछ खास कहा गया है। बजट में वैश्विक आधारभूत आय का जिक्र नहीं है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में इसका उल्लेख है। आमतौर पर बजट और आर्थिक सर्वेक्षण में तालमेल रहता है, मगर इस बार इसका ख्याल नहीं रखा गया है। क्या वित्तमंत्री इस पर रोशनी डालने की जहमत उठाएंगे?

अंत में माननीय वित्तमंत्री से एक सवाल और। उन्होंने अपने दो घंटे से भी ज्यादा लंबे भाषण में ये क्यों नहीं बताया कि नोटबंदी के क्या-क्या फायदे हुए? उन्होंने इससे भविष्य में बेहतर परिणाम की बात तो कही, लेकिन नोटबंदी से जिनका रोजगार छिन गया उनकी क्षतिपूर्ति के लिए सरकार वर्तमान में क्या कर रही है, इस पर क्या उन्हें कुछ बोलना नहीं चाहिए?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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