कल तक यूपी में चुनावी जमीन तलाश रही जेडीयू ने अचानक यू-टर्न लिया है। पहले वहाँ ‘महागठबंधन’, फिर ‘गठबंधन’ की तमाम कोशिशों के नाकाम रहने के बाद पार्टी ने मौजूदा विधानसभा चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में पटना में सोमवार को हुई पार्टी नेताओं की बैठक में तय किया गया कि जेडीयू यूपी में सेक्युलर वोटों का बिखराव नहीं करेगी और सेक्युलर ताकतों की जीत के लिए अपील करेगी।
जेडीयू के यूपी चुनाव में ताल ठोकने की दो बड़ी वजहें थीं – पहली, बिहार में महागठबंधन के प्रयोग को मिली बड़ी सफलता और दूसरी, यहाँ लागू की गई शराबबंदी को मिला राष्ट्रव्यापी समर्थन। जेडीयू को लगा कि यूपी में हाथ आजमाने का ये सही वक्त है। लेकिन सारी जद्दोजहद के बावजूद पार्टी वहाँ के समीकरण में खुद को फिट नहीं कर पाई। जो भी हो, जेडीयू ने देर से सही लेकिन दुरुस्त निर्णय लिया है। वैसे भी जेडीयू की कमोबेश वहाँ वैसी ही स्थिति रहती जैसी समाजवादी पार्टी की बिहार में रही है या रह सकती है। ऐसे में चुनाव से दूर रहकर नीतीश ने अपनी साख को बट्टा लगने से तो बचा ही लिया, साथ ही सपा-कांग्रेस की जीत की स्थिति में सेक्युलर वोटों के नहीं बिखरने का श्रेय भी लेंगे वो अलग।
हालांकि सच यह है कि पार्टी ने किसी ‘चमत्कार’ की प्रतीक्षा अंतिम क्षण तक की। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव, प्रधान महासचिव केसी त्यागी, नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह और रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद से कोशिश की गई कि सपा-कांग्रेस गठबंधन में अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के शामिल होने की स्थिति में जेडीयू को भी कुछ सीटें मिल जाएं, लेकिन जब इस गठबंधन में यूपी के कुछ हिस्सों में अस्तित्व रखने वाली रालोद की जगह ही नहीं बन पाई तो फिर जेडीयू की बात ही क्या थी।
बहरहाल, नीतीश और उनकी पार्टी ने सूझ-बूझ वाला निर्णय लिया है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि इस निर्णय के पीछे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के यूपी चुनाव को लेकर लिए गए स्टैंड की भूमिका भी है। लालू ने पहले ही अपनी स्थिति भांप कर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया था और चुनाव न लड़ने व सपा को साथ देने की बात की थी। अब जेडीयू भी कमोबेश उन्हीं के नक्शेकदम पर है। अच्छी बात है कि यूपी चुनाव के कारण बिहार के जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन में जो दूरी-सी आ गई थी, वो अब नहीं रहेगी। बिहार की राजनीतिक स्थिरता के लिए जहाँ ये अच्छा संकेत है, वहीं भाजपा इससे निराश हुई होगी – यूपी और बिहार दोनों के मद्देनज़र।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप