Makarsankranti at Mandar Hill Banka , Bhagalpur.

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व ! 

लोक मान्यता है कि आज के ही दिन भगवान ‘भास्कर’ अपने पुत्र ‘शनि’ से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं | चूँकि ‘शनिदेव’ मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को तब से ही मकर संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है | यह पर्व स्नान और दान के रुप में प्रसिद्धि प्राप्त पर्व के नाम जाना जाता है |

यह भी बता दें कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चयन किया था | क्योंकि इसी दिन गंगाजी भगीरथ मुनि के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर (यानी गंगासागर) में जाकर मिली थी | तब से ही बंगाल के गंगासागर में ‘मकर संक्रांति’ के दिन लोगों की अपार भीड़ होती है | स्नान के बाद ‘तिल’ दान करते हुए लोग यही कहते हैं- “सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार |

यह भी जानिए कि मकर संक्रांति को तिल संक्रांति या खिचड़ी पर्व अथवा पोंगल भी कहा जाता है | मकर संक्रांति पूरे भारत, बांग्लादेश एवं नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है | पंजाब एवं हरियाणा में इसे ‘लोहडी’ के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही बनाया जाता है | अग्निदेव की पूजा करते हुए तिलचौली ( तिल-गुड़-चावल-मक्का ) की आहुति दी जाती है | संपूर्ण उत्तर प्रदेश में तो इस पर्व को ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है | इस दिन खिचड़ी खाने एवं दान देने का बहुत महत्व होता है | गुजरात में आज के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है |

गौरतलब है कि यह पर्व प्रायः जनवरी के 14 वें दिन या यदकदा 15 वें दिन पड़ता है | इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है | मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारंभ होती है | यही कारण है कि गुजरात व उत्तराखंड में इस पर्व को ‘उत्तरायणी’ भी कहते हैं | जहां तमिलनाडु में ‘पोंगल’ और केरल व कर्नाटक में इसे ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं वहीं नेपाल में ‘सूर्योत्तरायण’ के साथ-साथ थारू समुदाय द्वारा इस पर्व को ‘माघी’ भी कहा जाता है | इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है और लोग तीर्थस्थल में स्नान कर अन्न-वस्त्र दान करते हैं |

मधेपुरा के पुराने जिला मुख्यालय भागलपुर (प्रमंडल) के वर्तमान बांका जिले के बौंसी में स्थित मंदार-पर्वत पौराणिक समुद्र-मंथन की गाथा का साक्षी रहा है | ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु श्री देवी लक्ष्मी के साथ मंदार पर्वत पर विराजमान रखकर अंगवासियों पर अपनी कृपादृष्टि अनुग्रहित करते रहे हैं | लोक आस्था के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग के समस्त देवगण भगवान विष्णु को अपनी श्रद्धा निवेदित करने हेतु मंदार पर्वत पर आते हैं | उस दिन वहां एक बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें निकटवर्ती बंगाल एवं झारखंड राज्यों के भी दर्शनार्थियों की और विशेषरूप से आदिवासियों की अच्छी-खासी संख्या रहती है | यह मेला सोनपुर और सिंहेश्वर जैसा बड़ा मेला होता है | यह भी बता दें कि 16 वीं शताब्दी के महान वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु के 1505 ई.  के मंदार-परिदर्शन की स्मृति आज भी मंदार पर्वत के पीछे उनके चरण-चिन्ह के रूप में एक छोटे से मंदिर में मौजूद है |

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