विश्व को एक परिवार और सभी धर्मों के प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा का मंदिर मानने वाले स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिए चिर स्मरणीय, आदरणीय एवं अनुकरणीय बने रहेंगे |
अपने जीवन में 39 बार सूर्य की परिक्रमा करने वाले स्वामी विवेकानंद ने संसार को अगणित कल्याणकारी योजनाओं से जागृत किया | आज उनकी 154वीं जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मधेपुरा के हर डगर, हर मोड़ पर तथा हर संस्था, हर छोड़ पर स्वामी जी द्वारा दिये गये संदेशों को आत्मसात करना- प्रत्येक युवजन का परम कर्तव्य एवं सर्वोत्कृष्ट धर्म माना जा रहा है |
मधेपुरा के युवजनों द्वारा उसी धर्म का पालन करते हुए आज प्रायः सभी राजनैतिक संगठनों एवं संस्थानों द्वारा स्वामी विवेकानंद के जीवन-दर्शन एवं आदर्शों को याद किया जा रहा है | जहां एक ओर मधेपुरा कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य डॉ.अशोक कुमार की टीम ने स्वामी विवेकानंद को युगपुरुष कहा वहीं दूसरी ओर पी.एस.कॉलेज के प्राचार्य डॉ.राजीव कुमार सिन्हा सहित एन.एस.एस. टीम के सर्वेसर्वा डॉ.अभय कुमार ने स्वामी जी को युवाओं के प्रेरणा स्रोत बताया | और जहां एक ओर आभास आनंद झा के आवास पर- ‘उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक आगे बढ़कर अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लो ‘ के वेद वाक्य के साथ स्वामी जी को याद किया गया वहीं दूसरी ओर समिधा ग्रुप परिसर में संदीप सांडिल्य की टीम द्वारा विवेकानंद को स्मरण करने हेतु दिनभर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया |
यह भी जानिये कि युवाओं के जहां स्वामी विवेकानंद ने ऐसी सारगर्भित बातें कही है- “विवेक और वैराग्य से कदाचित काम की अभिलाषा जा भी सकती है, लेकिन कामवासना सर्वथा निर्मूल नहीं हो सकती |” वही अनुभव की गहराई में उतरने के बाद उन्होंने इस तरह अपनी अनुभूति को अभिव्यक्ति दी है- “यदि कोई व्यक्ति किसी काम के प्रति ध्यान मग्न होकर उसकी गहराई में उतरता है या अपने प्राणों में उसे उतर जाने देता है तो उसकी कामवासना कुछ विशेष कालावधि के लिए कदाचित लुप्त हो भी सकती है, क्योंकि तभी सारी ऊर्जा ऊंचे उद्देश्य प्राप्ति के केंद्रों में समाहित हो रही होती है |
बता दें कि चन्द शब्दों में इस युवा वेदांती विवेकानंद के आदर्शों की व्याख्या संभव नहीं, लेकिन केवल इतना ही बताता हूं कि विवेकानंद ही वह पहला शख्स था जिन्होंने भारत को ‘माता’ माना | तभी तो भारत के प्रायः ऋषि-मुनियों ने हिमालय पर यानि सिर पर बैठकर तपस्या की और स्वामी जी मां के चरणों यानी कन्याकुमारी में बैठकर अपनी तपस्या करते दिखे |
यह भी कि जब समाज अनपढ़ था तब आयरलैंड से ‘सिस्टर निवेदिता’ को लाकर लड़कियों का पहला स्कूल खुलवाये थे | बंगाल में दरिद्र नारायण भोज की परंपरा शुरू की थी, क्योंकि स्वामी जी समाज के सर्वांगीन विकास की बात किया करते थे | स्वस्थ रहने और दूसरों के लिए काम करने की बातें करते थे | स्वामी जी सदा यही कहते कि मुझे केवल 100 ईमानदार और चरित्रवान व्यक्ति मिल जाय तो मैं पूरे संसार में क्रांति ला दूंगा |