नोटबंदी के 50 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश को आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पूरी तरह फ्लॉप शो करार दिया है। नववर्ष की पूर्व संध्या पर दिए गए प्रधानमंत्री के इस संदेश को शून्य अंक देते हुए लालू ने भावहीन, प्रभावहीन, उत्साहहीन और घुटनों के बल रेंगता हुआ प्री-बजट भाषण बताया। भाषण में नोटबंदी की चर्चा नहीं करने पर तंज कसते हुए लालू ने कहा कि प्रधानमंत्री ने भी मान लिया है कि उनका अभियान बुरी तरह फेल हो गया, इसीलिए इसकी कोई चर्चा नहीं की। उपलब्धि होती तो पीट-पीटकर ढोल फाड़ देते।
प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देते हुए आरजेडी के मुखिया ने कहा कि त्याग-बलिदान की कथा और परमार्थ की बातें वे अपने अमीर मित्रों के सुनाकर देखें। दो मिनट में कुर्सी छिन जाएगी। इस ‘शुद्धि यज्ञ’ की ओट में गरीबों की बलि चढ़ाने का अधिकार उन्हें किसने दिया? प्रधानमंत्री पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए लालू ने कहा कि 50-50 दिन चिल्लाने वाले प्रधानमंत्री पर अब कोई भरोसा नहीं करेगा। सैकड़ों लोगों की जान चली गई। 25 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया। इसके बावजूद इतना संवेदनहीन और हृदयहीन भाषण। अफसोस का एक शब्द भी नहीं।
प्रधानमंत्री से सवालों की झड़ी लगाते हुए लालू ने पूछा कि अर्थव्यवस्था का कितना नुकसान हुआ? इसकी भरपाई कैसे होगी? जीडीपी में कितनी गिरावट आई? नए नोट छापने पर कितना खर्च हुआ? कितना कालाधन आया? बैंकों में कितना जमा हुआ? कितनी नौकरी गई? लालू ने कहा कि मोदी को बताना चाहिए था कि आम लोगों की इतनी फजीहत के बाद कितना कालाधन आया? कितने भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई हुई? जो लोग कतारों में खड़े रहकर मर गए, उनके परिजनों को कितना मुआवजा दिया जाएगा? फैक्ट्रियों के बंद होने से बेरोजगार होने वाले लाखों युवाओं को सरकार कितनी राशि देगी?
इसमें कोई दो राय नहीं कि नोटबंदी मोदी सरकार का साहसिक और कई मायनों में ऐतिहासिक निर्णय था। इसके दूरगामी परिणाम भी प्रधानमंत्री के वादे के मुताबिक होंगे, ये भी मान लेते हैं। लालू का इस तरह सवालों की बौछार करना भी उनकी राजनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन एक बार अपने हृदय पर हाथ रखें और कहें कि क्या सचमुच लालू के सारे सवाल तथ्यहीन और अनर्गल हैं? क्या नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी सचमुच उस ‘रंग’ में थे, जिसके लिए वे जाने जाते हैं? उनके बहुप्रतीक्षित संबोधन में कुछ लुभावनी घोषणाएं तो थीं, लेकिन क्या हमारे-आपके मन में उमड़ते-घुमड़ते कई प्रश्न अनुत्तरित नहीं रह गए?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप