मधेपुरा के सांसद और जनअधिकार पार्टी के संरक्षक राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कहा है कि यदि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सही मायने में बेनामी संपत्ति को बाहर लाना चाहते हैं तो पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार सहित अपनी पार्टी के विधायकों और सांसदों की संपत्ति की जांच कराएं। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो बेनामी संपत्ति के नाम पर उनका कुछ कहना लोगों की आँखों में धूल झोंकने के बराबर होगा। गौरतलब है कि पप्पू ने ये बातें रविवार को पटना में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कही।
लालू-नीतीश पर निशाना साधने के साथ-साथ पप्पू ने भाजपा को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की कि भाजपा द्वारा विभिन्न जिलों में पार्टी कार्यालय खोले जाने के लिए खरीदी गई जमीन की जांच हो। उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से तमाम राजनीतिक पार्टी को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए कानून बनाने और राजनीतिक दलों के खातों की निगरानी की भी मांग की।
नोटबंदी के मुद्दे पर जनअधिकार पार्टी के संरक्षक ने कहा कि केन्द्र सरकार ने कालाधन के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर 500 और 1000 रुपये पर रोक लगाकर आम जनता की परेशानी बढ़ा दी है। उन्होंने कहा कि सरकार को नोटबंदी को लेकर हाईकोर्ट द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी के कारण उद्योग और व्यवसाय ठप्प पड़ गया और एक बड़ी आबादी बेरोजगार हो गई है। मधेपुरा के सांसद ने केन्द्र सरकार पर कैशलेस सोसाइटी बनाने के नाम पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया और कहा कि देश के कई अर्थशास्त्री ने नोटबंदी को अव्यावहारिक करार दिया है।
प्रेस कांफ्रेस में पप्पू ने घोषणा की कि उनकी पार्टी जनता के मुद्दों को लेकर आगामी 20 दिसंबर को रेल चक्का जाम और 22 दिसंबर को सड़का जाम करेगी।
चलते-चलते पप्पू यादवजी से एक बात पूछे बिना नहीं रहा जा रहा कि आज जिस लालू की सम्पत्ति की जांच कराने वो नीतीश से कह रहे हैं, आज भी उसी लालू की पार्टी से वो संसद में हैं और हाल-हाल तक खुद को उनका ‘राजनीतिक वारिस’ बताते नहीं थक रहे थे। नैतिकता का तकाजा यह है कि वे पहले संसद की सदस्यता से इस्तीफा दें और उसके बाद लालू के लिए जो चाहे बोलें। और जहाँ तक बात भाजपा की है, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा से उनकी ‘नजदीकियां’ और उसके शीर्ष नेताओं से उनकी ‘मुलाकातें’ कोई छिपी हुई बात नहीं है।