जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए अपने तल्ख तेवर और बयानों से चर्चा में रहने वाले आरजेडी के वरिष्ठ नेता व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह को जेडीयू ने बड़े सख्त लहजे में कहा कि वे ‘महागठबंधन धर्म’ से बाहर निकल रहे हैं और साथ में ये भी कि अगर पार्टी सुप्रीमो लालू ने अपने इस नेता को ‘कंट्रोल’ नहीं किया तो ‘कार्रवाई’ की बात भी सोची जा सकती है।
गौरतलब है कि रघुवंश ने बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर बयान दिया था कि इन दिनों नीतीश की नजदीकी भाजपा से बढ़ रही है और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पहले भी नीतीश भाजपा के साथ थे। ये बयान देकर रघुवंश ने जो ‘आग’ लगाई उसमें भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ये कहकर और ‘घी’ डाल दिया कि जो व्यक्ति 17 साल तक साथ रहने के बाद भाजपा को धोखा दे सकता है, वो किसी को भी दे सकता है। रघुवंश प्रसाद को लगता होगा कि जो भाजपा का नहीं हुआ वो लालू के साथ कब तक रहेगा?
इन बयानों के बाद तिलमिलाए जेडीयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि रघुवंश प्रसाद सिंह अपना दिमागी संतुलन खो चुके हैं और आजकल वे ‘पॉलिटिकल कोमा’ में हैं। आगे उन्होंने लालू से रघुवंश पर लगाम लगाने की अपील करते हुए कहा कि लालूजी हमारे महागठबंधन के वरिष्ठ नेता हैं और मैं उनसे अपील करता हूँ कि वो अपने नेता पर लगाम लगाएं।
पर रघुवंश तो रघुवंश ठहरे। वे कहाँ चुप रहने वाले थे। उन्होंने उल्टा जेडीयू से सवाल किया कि मुझे ‘महागठबंधन धर्म’ वाले लोग बताएं कि नोटबंदी पर अलग स्टैंड लेना कौन-सा गठबंधन धर्म है। इतना ही नहीं, उन्होंने एक बार फिर नीतीश पर आरोप लगाते हुए कहा कि नीतीश कुमार जानबूझकर मुझे गाली दिलवा रहे हैं।
बहरहाल, जेडीयू-आरजेडी के बीच आए दिन नोक-झोंक होती ही रहती है और ज्यादातर अवसरों पर कारण रघुवंश बाबू ही होते हैं। पार्टी ने उन्हें कई बार चेतावनी भी दी है लेकिन उनके बयानों की तल्खी घटने की जगह बढ़ती ही जा रही है। उन जैसे वरिष्ठ, अनुभवी व कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे नेता ऐसा ‘अगंभीर’ बर्ताव करेंगे यह बात पचती नहीं। ऐसे में एक सवाल यह उठ खड़ा होता है कि कहीं यह सब ‘प्रायोजित’ और ‘सोची-समझी रणनीति’ के तहत तो नहीं हो रहा? खैर, ये राजनीति है और राजनीति में ‘रघुवंश की रीत’ सदा से चली आई है। इन दांव-पेंचों में ज्यादा न ही उलझें तो बेहतर है।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप