बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा की बढ़ती नजदीकियों और उनके बीच ‘गुप्त’ बातचीत की अटकलों से महागठबंधन के सहयोगियों में बेचैनी है। इस बीच आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत की है। कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि रविवार को हुई इस बातचीत के दौरान बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी भी मौजूद थे। इस बाबत पूछे जाने पर कोई भी टिप्पणी करने से आरजेडी के लोग परहेज कर रहे हैं।
गौरतलब है कि नोटबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार जिस तरह खुलकर मोदी सरकार का समर्थन कर रहे हैं उसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि नीतीश का ‘नैतिक’ समर्थन अब ‘व्यावहारिक’ समर्थन में तब्दील हो गया है। तभी तो वो नोटबंदी के मुद्दे पर सोमवार को आयोजित विपक्षी दलों के ‘भारत बंद’ और ‘आक्रोश रैली’ से भी अपनी पार्टी को दूर रख रहे है, और उधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान उनके ‘निर्णय’ और ‘सहयोग’ की खुली सराहना और स्वागत कर रहे हैं।
नीतीश के इस ‘यू-टर्न’ से आरजेडी और कांग्रेस का सकते में आना स्वाभाविक है। नोटबंदी का खुलकर विरोध कर रहीं दोनों पार्टियां यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि आखिर क्या वजह है जिससे नीतीश एक बार फिर से भाजपा के करीब जाने को मजबूर हैं। यह सही है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता लेकिन किसी के करीब जाने या किसी से दूर होने की कोई छोटी या बड़ी, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वजह तो होनी ही चाहिए। नहीं तो कल तक जो नीतीश मिशन-2019 को ध्यान में रख एक-एक कदम बढ़ाने और मोदी के बरक्स खुद को खड़ा करने में लगे थे, आज भाजपा के लिए उनका सोया (या मोदी के उदय के बाद मर चुका) प्यार यूं अचानक जग न गया होता!
यह सही है कि बिहार में लालू के दोनों लाल के साथ सत्ता संभालने में नीतीश बहुत ‘सहज’ नहीं महसूस करते लेकिन नैतिकता का तकाजा यह है कि वो मैनडेट का सम्मान करें और ईमानदारी से गठबंधन धर्म निभाएं। अन्यथा, आने वाले समय में जनता की सहानुभूति लालू (कांग्रेस के साथ) बटोर ले जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप